Monthly Archives: June 2018

Beginner’s guide – azhagiya maNavALa mAmunigaL

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SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama:

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ANdAL pAtti greets the children, who all are excited to learn and hear about maNavALa mAmunigaL  .

pAtti : Welcome children, how did you all enjoy your summer vacation?

parASara : pAtti , vacation was good. We are now eager to hear about maNavALa mAmunigaL. Can you tell us about him?

pAtti :  Sure children. He was born in AzhwAr thirunagari to thigazhak kidanthAn thirunAvIrudaiya pirAn and SrI ranga nAchchiyAr as an avathAram of AdhiSEshan and punar avathAram (reincarnation) of yathirAjar. He was named azhagiya maNavALan (also azhagiya maNavALap perumAL nAyanAr). He learns all sAmAnya SAsthram (basic principles) and does vEdha adhyayanam under his father’s guidance .

vyAsa : pAtti, wasn’t thiruvAimozhip piLLai his AchAryan?

pAtti : yes vyAsa, hearing about thiruvAimozhip piLLai’s greatness, He surrenders unto him. He becomes expert in aruLichcheyal (dhivya prabandham) especially thiruvAimozhi and eedu 36000 padi vyakyAnam. He was also greatly attached SrI rAmAnuja and served him in bhavishyadhAchAryan sannidhi in AzhwArthirunagari. Due to his overwhelming affection towards yathIndhra (SrI rAmAnuja), he was fondly known as “yathIndhra pravaNa” (one who is very attached to yathIndhra).

Later on, recollecting his AchAryan’s niyamanam he goes and lives in SrIrangam to propagate our sampradhAyam. After reaching SrIrangam, he also accepts sanyAsa ASramam and becomes to be popularly known as azhagiya maNavALa mAmunigaL and periya jIyar.

He writes beautiful commentaries to rahasya granthams such as mumukshuppadi, thathva thrayam , SrIvachana bhUshaNam with many references from vEdham, vEdhantham, ithihAsams, purANams and aruLichcheyal .

He writes commentaries to rAmAnuja nURRanthAdhi , gyAna sAram and pramEya sAram which explains the charama upAya nishtai  (understanding  AchAryan is everything). mAmunigaL wrote thiruvAimozhi nURRanthAdhi which highlights the meanings of thiruvAimozhi and greatness of nammAzhwAr, based on the request from few SrIvaishNavas. He even recorded the valuable teachings of our pUrvAchAryas by writing upadhEsa rathina mAlai which highlights AzhwArs’ birth places, thirunakshathrams, thiruvAimozhi and SrIvachana bhUshaNam .

mAmunigaL also performs dhivya dhESa yAthrAs and performs mangaLAsAsanam to all the  perumALs and AzhwArs.

vEdhavalli : pAtti, amazing to hear about mAmunigaL, and his hard work for our sampradhAyam.

pAtti : yes vEdhavalli, even namperumAL was very interested to hear the kAlakshEpam of nammAzhwAr’s thiruvAimozhi with eedu 36000 padi vyAkyAnam from mAmunigaL. mAmunigaL was very pleased and performed kAlakshEpam of the same for 10 months and finally performed sARRumurai on Ani thirumUlam.

srisailesa-thanian-small

Once the sARRumurai  was completed, namperumAl assumes the form of a small child named aranganAyakam comes in front of mAmunigaL and starts reciting “SrISailESa dhayApAthram dhIbhakthyAdhi guNArNavam” with anjali mudhrA (joined palms). Everyone becomes amazed and understood that it was none other than namperumAl himself.

parASara : Wow – that’s great to be honoured by namperumAL himself. pAtti, is that why we start all of our sEvAkAlam with this thaniyan?

pAtti : yes parASara. emperumAn sends this thaniyan to all dhivya dhESams and ordered that it is recited during the commencement and at the end of the sEvAkAlam. Even thiruvEnkatamudayAn and thirumAlirunjOlai azhagar instructed that this thaniyan is recited at the beginning and at the end of aruLichcheyal anusandhAnam.

During his final days, mAmunigaL was writing the commentary for AchArya hrudhayam with great difficulty. Finally he decides to give up his thirumEni (divine form) and go to paramapadham. He recites Arththi prabhandham crying out to emperumAnAr to accept him and relieve him from this material realm. Subsequently, mAmunigaL, by the grace of  emperumAn ascends to paramapadham. ponnadikkAl jIyar, who was away during that time, returns to SrIrangam on hearing the news and completes all the charama kainkaryams for mAmunigaL.

aththuzhAy:  pAtti , all of us benefited immensely by speaking about him. Thanks for sharing the divine charithram of mAmunigaL with us.

pAtti : Pleasure is  mine too aththuzhAy , last but not the least, as he was accepted as AchAryan by periya perumAL, he completes the AchArya rathna hAram and the OrAN vazhi guru paramparai which started from periya perumAL himself.

In our next discussion we will discuss about  Sishyas (ashta dhik gajangal)  of mAmunigaL.

adiyen janani rAmAnuja dAsi

श्रीवैष्णव – बालपाठ – यामुनाचार्य (आळवन्दार्) के शिष्य – भाग 1

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श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः

बालपाठ

<< पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास)

जय श्रीमन्नारायण ।
आळ्वार एम्पेरुमानार् जीयर् तिरुवडिगळे शरणं ।

तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर्, श्रीशैल पूर्ण (पेरिय तिरुमलै नम्बि) और मालादर (तिरुमालै आन्डान्)

pancha-acharyas

यामुनाचार्य (आळवन्दार्) के शिष्य

पराशर और व्यास आण्डाल दादी के घर आपने मित्र वेदावल्ली के साथ प्रवेश करते है|

दादी : स्वागत वेदावल्ली। अंदर आ जाओ बच्चों|

व्यास : दादी , पिछली बार आपने कहा था की आप हमें रामानुज स्वामीजी और दूसरे आचार्य के बारे में विस्तार से बताएंगी|

पराशर : दादी , क्या आपने हमें यह नहीं बताया था की रामानुज स्वामी जी के बहुत सारे आचार्य थे, सिर्फ पेरिया नम्बि ही नहीं ? दूसरे आचार्य कौन थे दादी ?

दादी : जैसा मैंने आपको पिछली बार बताया था बच्चों, यामुनाचार्य स्वामी जी के बहुत शिष्य थे जो रामानुज स्वामी जी को सम्प्रदाय में लाने के लिए सिखाते थे ! उनमे से जो प्रमुख थे : १) तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) २) गोश्टि पूर्ण (तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि) ३) श्रीशैल पूर्ण (पेरिय तिरुमलै नम्बि) ४) तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) ५) तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) और साथ में श्री महा पूर्ण (पेरिया नम्बि) !|क्या आप को याद है हमने पिछली बार श्री महा पूर्ण (पेरिया नम्बि) स्वामी जी के बारे में बात की थी जब हम पिछली बार मिले थे ! अब, चलो में आपको दूसरे आचार्यो की बारे में और उनकी महत्वपूर्ण योगदान जो उनका हमारे सम्प्रदाय के प्रति रहा उसके बारे में बताउंगी !

पराशर : दादी, रामानुज स्वामी जी के बहुत सारे आचार्या क्यों थे ?

दादी : सभी आचार्यो ने उनको इस तरह से सिखाया की वह एक महान आचार्य बने ! तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) एक बहुत बडा कैङ्कर्य किया श्री रामानुज स्वामीजी को श्रीरंगम लाकर |

व्यास : यह सब कैसे हुआ ? वह कहानी भी हमें बताये दादी |

दादी : उस समय रामानुज स्वामी जी कांचीपुरम में रहते थे और सन्यास आश्रम भी स्वीकार किया! तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) कांचीपुरम गए और तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) से विनती किये उनको देव पेरुमल के समीप अरैयर् सेवा करने दे ! देव पेरुमल जी ने अर्चक से कहलवाया की उनके सामने ही अरैयर् सेवा किया जाए ! अरैयर् स्वामी जी ने बहुत सेवा भाव से भगवान जी के सामने नृत्य के साथ पाशुरम गाये ! भगवन् उनसे बहुत प्रसन हुए और उनको बहुत सारे उपहार दिए | अरैयर् स्वामी जी बोले की उनको उपहार नहीं चाहिए उनको तो और कुछ चाहिए | भगवान् जी मान गए और बोले ” हम आपको सब कुछ देंगे, आप बोले तो सही” | अरैयर् स्वामी जी तब रामानुज स्वामी जी की तरफ इशारा करते हुए बोले की वह अपने साथ श्री रामानुज स्वामी जी को श्री रंगम ले जाना चाहते है ! भगवन बोले ” हम सोच भी नहीं सकते थे की आप रामानुज स्वामी जी को हमसे मांगेगे; आप कुछ और मांगिये”| अरैयर् स्वामी जी बोले ” आप और कोई नहीं श्री राम जी है जो कभी दो शब्द नहीं बोलते , आप अपने बचन से इंकार नहीं कर सकते ! फिर भगवन जी ने स्वीकार किये और रामानुज स्वामी जी को जाने की अनुमति प्रदान की !

व्यास : दादी कितनी बड़ी चालाकी थी यह| यह अरैयर् स्वामीजी की बुद्धिमता थी की वह पेरुमल स्वामी जी को मना सके !

दादी : बोलो व्यास | उसी समय अरैयर् स्वामी जी ने रामानुज स्वामी जी का हाथ पकड़ा, और श्री रंगम जाने के लिए प्रस्थान किया | फिर , अरैयर् स्वामी जी ने वह महत्व पूर्ण सेवा की श्री रामानुज स्वामी जी को श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में लेकर जिससे हमारा सम्प्रदाय ने और आगे बड़े और उसको उचाईयो तक पहुँचाया |

वेदवल्ली : दादी, अपने कहा सभी आचार्यो ने रामानुज स्वामी जी कुछ न कुछ सिखाया ! अरैयर् स्वामी जी ने उनको क्या सिखाया ?

दादी :आलवन्दार स्वामी जी ने अपने सभी मुख्य शिष्यों को रामानुज स्वामी जी को अपने सम्प्रदाय के बारे में अलग अलग सीखने के लिए निर्देश दिए थे | अरैयर् स्वामी जी को आदेश था की वह सम्प्रदाय का मूल तत्व रामानुज स्वामी जी को बताये ! अब, रामानुज स्वामी जी ने बहुत सुन्दर कृत किये इससे पहले की वह अरैयर् स्वामी जी के पास जाते सीखने के लिए | उन्होंने ६ महीने आचार्य सेवा में कैंकर्य किये कुछ भी सीखने से पहले | यह एक बहुत महत्व पूर्ण पहलु है जो श्री रामानुज स्वामी जी, कुरतालवान स्वामी जी, मुदलियानदान स्वामी जी और बहुत आचार्य जी ने अपने जीवन में किये — अपने आचार्यो का कैंकर्य किये उनसे सीखने से पहले | यह उनकी भक्ति भाव दर्शाता है की वह किससे क्या सीख रहे है और किस उदेश्ये से सीख रहे है | रामानुज स्वामी जी प्रति दिन दूध गरम करते और अरैयर् स्वामी जी को हल्दी का लेप बनाकर देते जब भी आवश्यकता होती !

व्यास : दादी, दूसरे आचार्यो ने रामानुज स्वामी जी को क्या सिखाया ?

दादी: हाँ, में एक एक करके उस पर आ रही हूँ | तिरुमलै नम्बि, रामानुज के मामाजी लगते थे | वह थिरु वेंकट आद्री के पहले निवासी थे | वह प्रति दिन आकाश गंगा जाकर भगवान् जे के सनान के लिए जल लेकर कैंकर्यं करते थे | वह भगवान् जी की सेवा बहुत ध्यान और मन से करते थे | उनके आचार्य जी का आदेश था की वह रामानुज स्वामी जी को श्री रामायण का सार और उनके श्लोको का सुन्दर वर्णन सीखा सिखाये | श्री रामायाण बहुत प्रसिद्ध है हमारे समप्रदायम में शरणागति शास्त्र की तरह | इळयाळ्वार – यह नाम रामानुज स्वामीजी के मामाजी, पेरिय तिरुमलै नम्बि (श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी) ने उनके नामकरण के दिन दिये थे । यही नहीं श्री तिरुमलै नम्बि स्वामी जी ही थे जिन्होंने गोविंदा स्वामी को वापिस श्री वैष्णव सम्प्रदाय में लाये थे जो रामानुज स्वामी जी की ममेरे भाई थे | उनका ज्ञान हमारे सम्प्रदाय के लिए और उनका अलवार स्वामी के पाशुराम के प्रति बहुत लगाव था |

पराशर : दादी, क्या आप हमें तिरुमाळै अण्डाण स्वामी जी के बारे में बता सकते हो ? उन्होंने रामानुज स्वामी जी किस तरह से मदद की ?

दादी : तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) जी को पूरी ज़िम्मेदारी दी गयी थी की वह रामानुज स्वामी जी को थिरु वाईमोली सिखाये | जब रामानुज स्वामी जी श्री रंगम पहुंचे, तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि (श्री गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) जी ने ही उनका मार्ग दर्शन किया था की वह तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) से नम्मालवार (श्री शठकोप स्वामीजी) तिरुवाय्मोळि (सहस्रगीति) को सुने और उनका सार मूल तत्व समझे | यद्यपि, शुरुआत में दोनों में कुछ मतभेद थे क्योंकि यह किसी भी महान विद्वानों के बीच होता है, इसे सुलझाया गया और रामानुज ने अपने आचार्य तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) के आशीर्वाद के साथ अलवार के पाशुरम में छिपे जटिल अर्थों को सीखा | तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) जी की उनके आचार्य आलवन्दर के लिए इतना सम्मान और भक्ति थी। वह कभी भी अपने आचार्य के मार्ग और शिक्षाओं से दूर नहीं चले और उन्हें रामानुज स्वामी जी को के सिखाया ताकि वह हमारे संप्रदायम के कैंकर्यं को आगे ले जा सकें।

वेदवल्ली : तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि (श्री गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) और तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) जी ने रामानुज स्वामी जी को क्या सिखाया ?

दादी : में आपको अगली बार जब हम मिलेंगे तब बताउंगी | उनके बारे में बहुत सी रोचक कहानियां है |

व्यास , पराशर और वेदवल्ली (मिलकर ) : हमें अभी कहानी सुनाइए दादी माँ !

दादी : अभी बहुत देर हो गयी है | आज के लिए यह काफी है | अभी आप घर जाये और कल आप दुबारा वापिस आना और अपने दोस्त को अपने साथ लाना नहीं भूलना |

बच्चे अपने घर को जाते है और हमारे सम्प्रदाय के आचार्यो के बारे में सोचते है और बहुत उत्सुकता से इंतज़ार करते है की कब दूसरे दिन दादी उनको कहानी सुनाएगी |

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2016/07/beginners-guide-alavandhars-sishyas-1/

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

श्रीवैष्णव – बालपाठ – पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास)

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श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः

बालपाठ

<< आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी)

व्यास और पराशर आण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते हैं। अत्तुज़्हाय् अपने हाथ में एक पुरस्कार के साथ प्रवेश करती है।

दादी : प्रिय! यह तुमने क्या जीता है?

व्यास: दादी, अत्तुज़्हाय् ने हमारे स्कूल में आण्डाल के रूप में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भाग लिया , तिरुप्पावै से कुछ पाशूरम (तमिल में भजन) गाए और पहला पुरस्कार जीता।

दादी :अत्तुज़्हाय् यह अद्भुत है! आज मैं आपको पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास) के बारे में बताती हूं, उसके बाद में आपसे पाशूरम (तमिल में भजन) सुनुँगी|

व्यास, पराशर और अत्तुज़्हाय् ( एक साथ ) : और इळैयाज़्ह्वार् (श्री रामानुज) के बारे में भी दादी |

दादी : हां बिल्कुल। जैसा कि मैंने पिछली बार कहा था, पेरिय नम्बि, आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के प्रमुख शिष्यों के में से एक थे । उनका जन्म श्रीरंगम में मार्गशीर्ष् मास, ज्येष्ठ नक्षत्र में हुआ था। आळवन्दार (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के समय के बाद , सारे श्रीरंगम के श्रीवैष्णव पेरिय नम्बि से विनती करते है की वह श्री रामानुजाचार्य को श्रीरंगम मे लाये । अतः वह श्रीरंगम से अपने सपरिवार के साथ कांचीपुरम की ओर चले। इसी दौरान श्री रामानुजाचार्य भी श्रीरंगम की ओर निकल पडे।

पराशर : दादी, इळयाळ्वार (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) श्रीरंगम को क्यों गए जब की वह कांचीपुरम में यादव प्रकाश जी से सीख रहे थे।

दादी : बहुत अच्छा सवाल है! याद रखें, पिछली बार मैंने आपको बताया था कि आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) ने तिरुक्कच्चि नम्बि (कान्ची पूर्ण) को इळयाळ्वार (श्री रामानुजाचार्य) को मार्गदर्शन करने के लिए सौंपा था? जब इळयाळ्वार स्वामीजी (श्री रामानुजाचार्य) का उनके गुरु यादव प्रकाश जी के साथ मत भेद हो जाता है और परेशान हो जाते है, और उनके मन में बहुत शंका और प्रश्न घर कर जाते है जैसे मन में काले बदल छा गए हो, तब वह तिरुक्कच्चि नम्बि (कान्ची पूर्ण) के पास समाधान ढूंढ़ने के लिए जाते हैं! और तिरुक्कच्चि नम्बि (कान्ची पूर्ण) ने मार्गदर्शन के लिए किससे बात की?

अत्तुज़्हाय् : देवप् पेरुमाळ् (पेरुमल / भगवान /श्री रंगनाथ)!

दादी : अति उत्कृष्ट! यह भगवान/पेरुमल थे जो सदैव इळयाळ्वार स्वामीजी की बचाव करते थे और उनको पेरिय नम्बि जी के पास जाने को प्रकाशित करते थे, और कहते की आप पेरिय नम्बि से पञ्च संस्कार करवाइये और उनके शिष्य बन जाईये| तिरुक्कच्चि नम्बि (कान्ची पूर्ण) इळयाळ्वार स्वामीजी (श्री रामानुजाचार्य) के मन में जो शंका होती है वह सब ऐसे दूर करते है जैसे सूर्य उदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है| इस तरह से इळयाळ्वार स्वामीजी (श्री रामानुजाचार्य) कान्चि छोड़ के जाते हैं, फिर पेरिय नम्बि से कान्चि के रास्ते में मिलते है| आश्चर्य की बात यह थी की वे दोनो मदुरान्तगम् मे मिलते है और तभी पेरिय नम्बि श्री रामानुजाचार्य का पञ्च संस्कार करते हैं और कान्चिपुरम पहुँचकर श्री रामानुजाचार्य को सम्प्रदाय के अर्थ बतलाते है।

व्यास: अरे हाँ, हमें मालूम है की मदुरान्तगम् में भगवान श्री राम जी का मंदिर है| हम पिछली छुटियों में उस मंदिर में गए थे|लेकिन, वह कान्चि या श्री रंगम में क्यों नहीं गए इळयाळ्वार (श्री रामानुजाचार्य) जी को समाश्रयनम् करने के लिए| उन्होंने मदुरान्तगम् में ही क्यों किया ?

दादी: पेरिय नम्बि एक महान आचार्य थे जिन्हें इळयाळ्वार (श्री रामानुजाचार्य) के प्रति अत्यधिक लगाव और सम्मान था। वह जानते थे कि इस तरह के अच्छे कर्मों को कभी स्थगित नहीं किया जाना चाहिए और इळयाळ्वार (श्री रामानुजाचार्य) भी ऐसा महसूस कर रहे थे। बच्चों, इससे हम सीखते हैं कि हमारे सम्प्रदाय से संबंधित अच्छी चीजें या कैङ्कर्य में कभी देरी नहीं करनी चाहिए | जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा! पेरिय नम्बि हमारे सम्प्रदाय के सच्चे सिद्धांतों को जानते थे जो कभी भगवान के भक्त को अलग नहीं करते थे और सभी को प्यार और सम्मान के साथ समान रूप से व्यवहार करते थे । वह अपने शिष्य रामानुज से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने हमारे सम्प्रदाय के भविष्य के आचार्य के लिए अपना जीवन त्याग दिया – रामानुजा!

व्यास : उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया! दादी, उन्होंने ऐसा क्यों किया ?

दादी : उस समय, वहां के शैव राजा ने रामानुजा को अपनी मांगों को स्वीकार करने के लिए अपनी अदालत में आने का आदेश दिया था। रामानुज स्वामीजी के बजाय, उनके महान शिष्य श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्), उनके आचार्य के रूप में छिपे हुए, पेरिय नम्बि के साथ राजा के दरबार में गए, जो बहुत बूढ़े थे। पेरिय नम्बि भी अपनी बेटी अत्तुज़्हाय् के साथ राजा के दरबार में गए !

अत्तुज़्हाय् : यह मेरा नाम भी है!

दादी : हाँ यही है! जब राजा उन्हें अपनी मांगों को स्वीकार करने का आदेश देता है, तो श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्) और पेरिय नम्बि दोनों राजा की मांगों को नहीं मानते हैं। राजा बहुत क्रोधित हो गया और अपने सैनिकों को उनकी आंखें निकालने का आदेश दिया। वृद्धावस्था के कारण दर्द को सहन करने में असमर्थ, पेरिय नम्बि अपना जीवन छोड़ देते है और श्रीरंगम जाने के रास्ते में परमपद चले जाते है, अंत समय में पेरिय नम्बि स्वामीजी कुरेश स्वामीजी की गोद में अपना सिर रखते है और फिर परमपद को प्रस्थान करते है। इन महान आत्माओं ने बिना किसी चिंता के सब कुछ त्याग दिया, हमारे रामानुज स्वामीजी की रक्षा करने के लिए, जो एक मोती के हार में केंद्रीय मणि की तरह है। अगर हम हार में मोती तोड़ेंगे तो क्या होगा?

व्यास और पराशर (कोरस में एक साथ): हार भी टूट जाएगा|

दादी : बिल्कुल ठीक! इसी तरह, हालांकि रामानुज स्वामीजी मोती के हार में केंद्रीय मणि है , जिसे हमारे श्री रामानुजा सम्प्रदाय कहा जाता है, मोतियों के रूप में सभी आचार्यों ने हार को एक साथ रखा और देखा कि केंद्रीय मणि सुरक्षित रहे । तो हम सभी को अपने आचार्यों के प्रति हमेशा आभारी रहना चाहिए और हमेशा अपने जीवन से नम्र होना चाहिए।

पराशर : दादी, श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्) के साथ क्या हुआ?

दादी : श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्), उनकी आंखें चली गईं, फिर वह श्री रांगम लौट आये । वह रामानुज स्वामीजी के महानतम शिष्यों में से एक थे और अपने जीवन के सभी पहलुओं में रामानुज स्वामीजी के साथ थे। अगली बार जब हम मिलेंगे तो मैं आपको श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्) और रामानुज स्वामीजी के बारे में और बताउंगी। अब, जल्दी करो और घर जाओ। आपके माता-पिता आपके लिए इंतज़ार कर रहे होंगे। और, अत्तुज़्हाय्, अगली बार मैं आप से तिरुप्पावै पासुरम सुनूंगी ।

बच्चे पेरिय नम्बि और श्री कूरेश (कूरत्ताज़्ह्वान्) के बारे में सोचते हुए घर वापस जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2016/07/beginners-guide-periya-nambi/

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
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Learn siRiya thirumadal (சிறிய திருமடல்)

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thirumangai AzhwAr with kumudhavalli nAchchiyAr

Author – thirumangai AzhwAr (திருமங்கை ஆழ்வார்)

Santhai class schedule, joining details, full audio recordings (classes, simple explanations (speeches) etc) can be seen at http://pillai.koyil.org/index.php/2017/11/learners-series/ .


Santhai (Learning) classes (ஸந்தை வகுப்புகள்)

Step-1
Step-2
Step-3

Audio Downloads (Click the links to download the MP3 files and listen)

pAsurams explanation in English – http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2018/03/siriya-thirumadal/

Lectures  (விரிவுரை) in thamizh

Introduction (அறிமுகம்) in thamizh

அறிமுகம்-1
அறிமுகம்-2

pAsurams explanation (பாசுரங்கள் விளக்கம்) in thamizh

Part-1
Part-2
Part-3
Part-4
Part-5
Part-6

Audio Downloads (Click the links to download the MP3 files and listen)

Full Recital in thamizh

Full Recital