श्रीवैष्णव – बालपाठ – पिळ्ळै लोकाचार्य शिष्य

श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

बालपाठ

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पराशर और व्यास दादी माँ के घर में वेदवल्ली और अतुळाय के साथ
पिळ्ळै लोकाचार्य (श्री लोकाचार्य स्वामीजी) के शिष्यों के बारे में जानने की जिज्ञासा के साथ प्रवेश करते हैं।

दादी : सुस्वागतम बच्चो, आप सब कैसे है ? मैं आप सभी के चेहरे पर उत्साह देख रही हूँ ।

व्यास : नमस्कार दादी जी, हम अच्छे हैं! दादी जी आप कैसे हैं? आप सही हैं हम बेसब्री से पिळ्ळै लोकाचार्य (श्री लोकाचार्य स्वामीजी) के बारे में सुनने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

दादी : हाँ बच्चों, यहाँ तक कि मैं भी आप सभी के साथ साझा करने की प्रतीक्षा कर रही थी | आशा है कि आप सभी को हमारी पिचला चर्चा याद होगी। क्या कोई मुझे उनके शिष्यो के नाम बता सकता है?

अतुळाय : दादीजी से , मुझे नाम याद है | कूर कुलोत्तम दास, विळान चोलै पिळ्ळै, तिरुवाय्मोऴि पिळ्ळै, मणप्पाक्कतु नम्बि, कोट्टुरण्णर, तिरुप्पुट्कुऴि जीयर, तिरुकण्णन्गुडि पिळ्ळै, कोल्लि कावलदास इत्यादि |

दादी : अतुळाय बहुत सुन्दर , अच्छा लगा की आपको नाम स्मरण है ! अब हम इनके बारे में विवरण से चर्चा करते है | पहले में आपको कूर कुलोत्तम दास जी के बारे में बताती हूँ |

सब बच्चे : अबश्य दादी जी |

दादी : कूर कुलोत्तम दास का जन्म श्रीरंगम में हुआ और वे कूर कुलोत्तम् नायन् के नाम से भी जाने जाते थे। | कूर कुलोत्तम दासर् ने तिरुमलै आलवार (तिरुवायमोली पिल्लै/ शैलेश स्वामीजी) को फिर से संप्रदाय में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे पिल्लै लोकाचार्य के निकट सहयोगियों में से एक हैं और उन्होंने उनके साथ तिरुवरंगन उला (नम्पेरुमाल की कलाब काल की यात्रा) के दौरान यात्रा की थी। 

तिरुमलै आलवार को सुधारने के लिए किये गए उनके अनेक प्रयासों और पिल्लै लोकाचार्य से सीखे हुए दिव्य ज्ञान को तिरुमलै आलवार तक पहुंचाने में, उनके द्वारा की गयी असीम कृपा के कारण मामुनिगल, उनकी महिमा का वर्णन करते हुए उन्हें “कूर कुलोत्तम् दासं उदारं” से संबोधित करते हैं (वह जो बहुत ही दयालु और उदार है)। रहस्य ग्रंथ कालक्षेप परंपरा में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान है और उनकी महिमा का वर्णन रहस्य ग्रंथों की कई तनियों में किया गया है। श्री वचन भूषण दिव्य शास्त्र में, यह निर्णय किया गया है कि एक शिष्य के लिए “आचार्य अभिमानमे उत्थारगम्”। इसके व्याख्यान में मामुनिगल समझाते हैं कि एक प्रपन्न के लिए जिसने सभी अन्य उपायों का त्याग किया है, आचार्य कि निर्हेतुक कृपा और श्री आचार्य का यह विचार कि “यह मेरा शिष्य है“ ही मोक्ष का एक मात्र मार्ग है। पिल्लै लोकाचार्य, कूर कुलोत्तम दासर् और तिरुवाय्मोळि पिल्लै के चरित्र में हम यह स्पष्ट देख सकते हैं। यह पिल्लै लोकाचार्य का तिरुवाय्मोळि पिल्लै के प्रति अभिमान और कूर कुलोत्तम दासर् का अभिमान और अथक प्रयास है, जिन्होंने संप्रदाय को महान आचार्य तिरुवाय्मोळि पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) को दिए, जिन्होंने फिर संप्रदाय को अलगिय मणवाल मामुनिगल को दिए।| यह बिल्कुल कूर कुलोत्तम दासर और तिरुमलै आऴ्वार के लिए अनुकूल होता है । चलो आइए हम सब कूर कुलोत्तम दासर् का स्मरण करें जो सदा-सर्वदा पिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी के चरण कमलों का आश्रय लेते है।

वेदवल्ली : दादीजी , हम सब को कूर कुलोत्तम दास जी के बारे में सुनकर बहुत प्रसनता हुई | हम सभी ने यह सीखा की शिष्य को कैसे अपने आचार्य का सम्मान करना चाहिए |

दादी : वेदवल्ली सबको “आचार्य अभिमानमे उतरागम ” स्मरण रहना चाहिए | अब हम पिल्लई लोकाचार्य स्वामीजी के दूसरे शिष्ये विळान चोलै पिळ्ळै जी के बारे में जानेंगे |

viLAnchOlai piLLai

व्यास : दादी, मैं यह पहले से जानता हुँ की उनको विळान चोलै पिळ्ळै नाम से क्यों जाना जाता था? क्यूंकि वह विल्लम वृक्ष पर चढ़कर पद्मनाभ स्वामी तिरुवनंतपुरम मंदिर का गोपुरम देखते थे | उनका जन्म ईलव कुल में हुआ था। अपने कुल के कारण वे मंदिर के अंदर नहीं जा सकते थे, इसलिए तिरुवनंतपुरम के अनंत पद्मनाभ मंदिर के गोपुर के दर्शन और मंगलाशासन के लिए वे अपने गाँव के विलम वृक्ष पर चढ़ जाया करते थे। विळान् चोलै पिल्लै ने ईदू, श्री भाष्य, तत्वत्रय और अन्य रहस्य ग्रंथ, अलगिय मणवाल पेरुमाल नायनाराचार्य से सीखा, जो श्री पिल्लै लोकाचार्य के अनुज थे।

उन्होंने श्री वचन भूषण अपने आचार्य श्री पिल्लै लोकाचार्य से सीखा और वे उसके अर्थों में विशेषज्ञ (अधिकारी) माने जाते थे।

श्री विळान् चोलै पिल्लै ने “सप्तगाथा” कि रचन की जिस में उनके आचार्य के “श्री वचन भूषण” के सार तत्व का वर्णन है।

पराशर : विळान् चोलै पिल्लै के आचार्यत्व के प्रति लगाव को देखकर हम बहुत हैरान हैं।

दादी : हाँ पराशर ! अपने आचार्य के प्रति सबसे बड़े कैंकर्य स्वरुप, उन्होंने आचार्य द्वारा दिए हुए अंतिम निर्देशों का पालन किया – श्री पिल्लै लोकाचार्य चाहते थे कि उनके शिष्य, तिरुवाय्मोली पिल्लै (तिरुमलै आलवार/ शैलेश स्वामीजी) के समक्ष जायें और उन्हें इस सुनहरी वंशावली के अगले आचार्य के रूप में तैयार करें; श्री पिल्लै लोकाचार्य, विळान् चोलै पिल्लै को तिरुमलै आलवार को श्री वचन भूषण के अर्थ सिखाने के निर्देश देते हैं। बच्चो अब मैं विळान् चोलै पिल्लै के जीवन में घटित एक महत्वपूर्ण घटना को साझा करना चाहूंगी।

अतुलहाय : दादी , उस घटना के बारे में हमें बताएं |

दादी : मुझे ज्ञात है की आप सब बहुत उत्सुकता से उस घटना के बारे में जानना चाहते है और यह मेरा कर्त्तव्य है की में आपके साथ सतविषय के बारे में आपको बताऊँ, इसलिए ध्यान से सुने |

एक दिन नम्बूध्री, अनंत पद्मनाभ भगवान की आराधना करते हुए देखते हैं कि विळान् चोलै पिल्लै पूर्वी द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं, ध्वज स्तंभ और नरसिंह भगवान की सन्निधि को पार करते हुए वे उत्तर द्वार से गर्भ गृह में प्रवेश करते हुए “ओर्रै कल मण्डप” के समीप से सीढियाँ चढते हैं और भगवान के सेवा दर्शन देने वाली तीन खिडकियों में से उस खिड़की के समीप खड़े होते हैं जहाँ से भगवान के चरण कमलों के दर्शन होता है।

जब नम्बूध्री यह देखते हैं, वे सन्निधि के द्वार बंद करके मंदिर से बाहर आते हैं क्योंकि उस समय की रीती के अनुसार विळान् चोलै पिल्लै अपने कुल के कारण मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं कर सकते थे।

उसी समय, विळान् चोलै पिल्लै के कुछ स्थानीय शिष्य मंदिर में पहुंचकर यह बताते हैं कि उनके आचार्य विळान् चोलै पिल्लै ने अपने आचार्य पिल्लै लोकाचार्य के चरणों में प्रस्थान किया!! और वे लोग विळान् चोलै पिल्लै के दिव्य विग्रह के लिए तिरु पारियट्टम और भगवान की फूल माला चाहते थे !! वे लोग मंदिर प्रवेश द्वार के समीप खड़े होकर रामानुज नूत्तन्दादि इयल आदि का पाठ करते हैं।

जब नमबूधिरी यह देखते हैं, उनके पूर्व में हुई गर्भगृह की घटना से बहुत अचंभा होते है और वे सभी को इसके बारे में बताते हैं!

जिस प्रकार तिरुप्पणालवार (योगिवाहन स्वामीजी) पेरिय कोइल में पेरिय पेरुमाल के श्री चरण कमलों में पहुंचे, उसी प्रकार यहाँ विळान् चोलै पिल्लै ने अनंत पद्मनाभ भगवान के श्री चरणों में प्रस्थान किया!

वेदवल्ली : दादी मैं विळान् चोलै पिल्लै के अंतिम क्षणों के बारे में सुनकर मेरे रोन्ते खडे होगये है ।

व्यास : जी हाँ, मेरी आँखों से ख़ुशी के आँसू बह रहे है । यह वास्तव में बताता है कि कैसे “ईलव कुल” से एक व्यक्ति को हमारे संप्रदाय में महिमा मिलती है।

दादी : ठीक है बच्चों, आप सभी के साथ यह एक अच्छा समय था। आशा है कि आप सभी को याद होगा कि हमने आज क्या चर्चा की। अगली बार, मैं आपको तिरुवाय्मोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) के बारे में विस्तार से बताउंगी , जल्द ही आप से मिलेंगे ।

सभी बच्चों ने पूरी ऊर्जा और खुशी के साथ चर्चा करके दादी जी के घर को छोड़ दिया।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

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