Arththi prabandham is a beautiful literature where mAmunigaL presents the state of an adhikAri (qualified person) who craves for eternal servitude towards bhagavath rAmAnuja.
आण्डाल दादी एक माला बना रही थी और आने जाने वालो को अपने घर से मंदिर जाते हुए देख रही थी। उन्होंने अपनी आंखों के एक कोने से अपने घर में भाग रहे बच्चों को पकड़ा और खुद मुस्कुराई। उन्होंने पेरिया पेरुमाल और थायार की तस्वीर को माला से सजाया और उनका स्वागत किया।
दादी : आओ बच्चों । क्या आप जानते हैं कि आज हम किसके बारे में चर्चा करने वाले हैं?
सभी बच्चे एक साथ बोलते है की वेदांताचार्य स्वामीजी के बारे में |
दादी: हाँ, क्या आप जानते हो की उनका यह नाम किसने दिया ?
व्यास : उनका ‘वेदांताचार्य’ नाम श्री रंगनाथ ने दिया | दादी, क्या यह सही है।
दादी : बिलकुल ठीक , व्यास । उनके जन्म का नाम वेंकटनाथन था। उनका जन्म कांचीपुरम में दिव्य दंपति अनंत सुरी और तोतारम्बाई से हुआ था।
पराशर : दादी हमें बताये ‘वेदांताचार्य’ स्वामी जी कैसे सम्प्रदाय में आये ?
दादी : जरूर पराशर | जब वेदांताचार्य छोटे थे, वे अपने मामा श्री किदाम्बी अप्पुलार के साथ श्री नदादूर अम्माल की कालक्षेप गोष्ठी में सम्मिलित होने गये थे। इसका उल्लेख करते हुए वेदांताचार्य कहते हैं कि श्री नदादूर अम्माल ने उन पर कृपा कर कहा कि सत्य की स्थापना करेंगे और विशिष्टाद्वैत श्रीवैष्णव सिद्धांत के सभी विरोधियों को समाप्त करेंगे।
अतुलाय : यकीनन , उनके आशीर्वाद से ही यह सब हुआ !
दादी (मुस्कराते हुए ) : हाँ अतुलाय | बड़ो का आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता |
वेदवल्ली : मैंने सुना है की वेदांताचार्य स्वमीज श्रीनिवास् भगवान् की पवित्र घंटी के अवतार थे | सही न दादी जी ?
दादी : हाँ, आप सही कह रहे है अतुलाय | उन्होंने सौ से ज्यादा ग्रन्थ संस्कृत, तमिल एवं मणिप्रवाल भाषा में लिखे है |
व्यास : सच में सौ से ज्यादा ग्रन्थ ?
दादी : हाँ, उनके प्रमुख ग्रंथों में से कुछ निम्न है – तात्पर्य चन्द्रिका, (गीता भाष्य का व्याख्यान है), तत्वटीका (श्री भाष्य के एक खंड का व्याख्यान), न्याय सिद्धज्ञानं (हमारे संप्रदाय की सिद्धांत का विश्लेषण करता है), सदा दूषणी (अद्वैत सिद्धांत के विरुद्ध है), आहार नियम(अनुशंसित भोजन की आदतों पर एक तमिल लेख) |
परशार : दादीजी , मै आश्चर्य चकित होने से अपने आपको रोक नही पा रहा हु की कैसे स्वामीजी आहार नियम पर ग्रन्थ लिखा और कैसे एक ही समय में जटिल दार्शनिक टिप्पणियों के बारे में लिखें।
दादी : हमारे पूर्वाचार्यो का ज्ञान सागर के समान गहरा था | पराशर, इस में कोई संदेह नहीं, ‘सर्वतंत्र स्वतंत्र’ (सभी कला और शिल्प के स्वामी), यह नाम श्री रंग नाच्चियार (श्री महालक्ष्मी जी) ने प्रदान किया।
अतुलाय : दादी जी हमें और बताइये| उसके बारे में ये सारे तथ्य सुनना दिलचस्प है|
दादी : ‘वेदांताचार्य’ स्वामीजी को ‘कवितार्किक केसरी’ (कवियों के बीच शेर) नाम से भी जाना जाते थे| उन्होंने एक बार 18 दिनों की लंबी बहस के बाद कृष्णमिस्रा नामक एक अद्वैती पर जीत हासिल की। एक अहंकारी और खोखला कवि द्वारा चुनौती दिए जाने पर उन्होंने ‘पादुका सहस्रम’ की रचना की। यह एक 1008 पद्य कविता है जो भगवान श्री रंगनाथ की दिव्य चरण की प्रशंसा करते है।
अवतार उत्सव के समय कञ्चि वेदन्ताचर्य
वेदवल्ली : यह गंभीर है! हम वास्तव में ऐसे महान आचार्यों के लिए धन्य हैं जो ऐसी अभूतपूर्व उपलब्धियों के बावजूद ऐसी विनम्रता रखते थे।
दादी : ठीक कहा वेदवल्ली | श्री वेदांताचार्य को भी, अपने पूर्वाचार्यों और समकालीन आचार्यों के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान था, जिसका प्रमाण उनकी “अभितिस्तव्” में मिलता है, “कवचं रंगमुक्ये विभो ! परस्पर-हितैषीणाम् परिसरेशु माम् वर्त्य” , (हे भगवान! कृपया मुझे श्रीरंगम में उन महान भागवतों के चरणों में निवास प्रदान करे जो परस्पर एक दुसरे के शुभ चिन्तक हैं)। कई अन्य आचार्यों और विद्वानों ने जैसे अळगिय मनवाळ मामुनिगल (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी), एऱुम्बि अप्पा, वादिकेसरी अऴगिय मणवाळ जीयर, चोलसिंहपुर (शोलिंगुर) के स्वामी डोड्डाचार्य जी ने वेदांताचार्य के ग्रंथों पर व्याख्यान लिखा है या उनका उल्लेख अपनी रचनाओं में किया है । वेदांताचार्य ने पिल्लै लोकाचार्य की प्रशंसा में ‘लोकाचार्य पंचासत’ नामक एक सुंदर प्रबंध कि रचना की। वेदांताचार्य, पिल्लै लोकाचार्य से आयु में 50 वर्ष छोटे थे और वे उनके बहुत बड़े प्रशंसक थे जिसे इस ग्रंथ के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है; इस ग्रंथ का आज भी तिरुनारायणपुरम (मेलकोट, कर्नाटक) में नियमित रूप से पाठ किया जाता है।
पाराशर : वेदांताचार्य स्वामी जी ने श्री रामानुजार जी को कैसे मानते थे ?
दादी : श्री वेदांताचार्य की श्री रामानुज के प्रति भक्ति को सभी भली प्रकार जानते हैं; अपने ग्रंथ “न्यास तिलका” की प्रारंभिक कविता “उक्त्य धनंजय” में, वे संतुष्टी करते हैं कि भगवान परोक्ष रूप में उन्हें यह बताते हैं की उनके द्वारा मोक्ष दिए जाने की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि श्री रामानुज के संबंध मात्र से ही उन्हें मोक्ष मिलने का निर्धारण हो गया है।
व्यास : दादी जी अपने सम्प्रदाय के आचार्यो के प्रति बहुत कुछ सीखने को है |
दादी : हाँ, एक रचना, वेदांताचार्य विजय (आचार्य चंपू) का उल्लेख करते हैं, जो गद्य और कविता के रूप में संस्कृत भाषा में महान विद्वान और कवि “कौशिक कवितार्किकसिंह वेदंताचार्य” द्वारा लिखी गयी है, जो लगभग 1717 AD के समय में हुए। इस रचना को वेदांताचार्य के जीवन का सबसे प्राचीन और सबसे प्रमाणिक अभिलेख माना जाता है।
अतुलाय : अति सुन्दर दादी जी , आज हमने वेदांताचार्य स्वामीजी के संस्कृत एवं तमिल ग्रंथो के बारे में जाना, उनकी विनम्रता और भक्ति के बारे में भी जाना | ऐसे महान उदाहरण का अनुसरण करने के लिए हम वास्तव में धन्य हैं।
दादी : हाँ बच्चो हम ऐसी महान आत्माओं को हमेशा याद करते हैं! हम कल फिर मिलेंगे। आप सभी के घर जाने का समय हो गया है।