श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
<< श्रीमन्नारायण की दिव्य कृपा
आण्डाल दादी: हे व्यास और पराशर ! मैं काट्टऴगियसिंग पेरुमाळ सन्निधि (भगवान् नरसिंह के लिए एक अलग मंदिर) में जा रही हूं। क्या तुम दोनों मेरे साथ आना चाहते हो ?
व्यास: ज़रूर दादी, हम आपके साथ जुड़ेंगे । पिछली बार जब आप हमें आऴ्वारों के बारे में बता रही थी । क्या आप हमें उनके बारे में अभी बता सकते हैं?
आण्डाल दादी: जो आपने पूछा है, वह अच्छा है, मैं आप दोनों को उनके बारे में अभी बताऊंगी।
सभी काट्टऴगियसिंग पेरुमाळ सन्निधि की ओर चलना शुरू कर दिए ।
आण्डाल दादी: कुल १२ (बारह) आऴ्वार हैं । उनके सभी गीतों का संग्रह अब ‘चार हजा़र दिव्य-प्रबन्ध’ के नाम से जाना जाता है ।
दरअसल, अमलनादिपिरान्प्रबन्ध, जो मैंने कल पढ़ा था, वह चतुस्सहस्त्र दिव्य-प्रबन्ध संग्रह का एक हिस्सा है।
पराशर: ओह ! दादी, वो १२ (बारह) आऴ्वार कौन हैं ?
आण्डाल दादी: श्रीसारयोगी स्वामीजी, श्रीभूतयोगी स्वामीजी , श्रीमहदाह्वययोगी स्वामीजी, श्रीभक्तिसार स्वामीजी, मधुरकवि-आऴ्वार स्वामीजी, श्रीशठकोप स्वामीजी, कुळशेखराऴ्वार स्वामीजी, श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी, आण्डाळ देवी, श्रीभक्ताङ्घ्रिरेणु स्वामीजी, योगिवाहन स्वामीजी, परकाल स्वामीजी — यह १२ आऴ्वार है ।
व्यास: अति उत्तम, दादी तो क्या यह वे १२ आऴ्वार स्वामीजी हैं जिन्हें श्रीमन्नारायण की महान दया प्राप्त थी?
आण्डाल दादी: हाँ, व्यास । वे भगवान् की अहैतुक कृपा के पात्र थे । भगवान् की अहैतुक कृपा को प्राप्त करने के बाद, इस दुनिया के अन्य लोगों के प्रति सत्भावना से, हजारों साल पहले, उन्होंने भगवान श्रीमन्नारायण की दया को उनके भजन-गीतों (पासुरों) के माध्यम से हम सभी को प्रदान किए । उनके इन्हीं स्तोत्रों के माध्यम से है हम भगवान् के बारे में समझ रहे हैं और पेरूमाळ की महिमा का आनंद ले रहे हैं ।
पराशर: ओह! दादी, मैंने सोचा था कि हम भगवान् को वेद के माध्यम से समझते हैं।
आण्डाल दादी: हाँ। निश्चित रूप से । लेकिन वेद बहुत बड़े है । कई जटिल मामले हैं जिन्हें संस्कृत भाषा के माध्यम से वेद में समझाया गया है, जो गहन अध्ययन के बिना समझना मुश्किल है । लेकिन, आऴ्वारों ने, वेद सार को,सरल तमिल भाषा के इन ४००० पासुरों में प्रस्तुत किया है । और जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं, वेद सार श्रीमन्नारायण की महिमागान करना है । इससे भी अधिक, आऴ्वार स्वामीजी ने अपने स्वयं के प्रयासों के बजाय भगवान् के प्रत्यक्ष अनुग्रह से स्वज्ञान प्राप्त किया – अत: यह अत्यधिक विशेष है ।
व्यास: हां, हम इसे अब समझते हैं। आऴ्वार भगवान् के बारे में बहुत सरल और ध्यान केंद्रित तरीके से समझा रहे थे । जैसे आप इन विषयों को अब हमे समझा रही हैं ।
आण्डाल दादी: बहुत अच्छा व्यास – यह बहुत अच्छा उदाहरण है। अब, आपको याद है, पहले हमने चर्चा की थी कि श्रीमन्नारायण ५ विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं – परमपद में पररूप (श्री वैकुण्ठ में भगवान का रूप), व्यूहरूप (भगवान विष्णु क्षीरसागर के रूप में), विभेद/विभाव रूप (राम, कृष्ण, मत्स्य आदि के रूप में अवतार), सर्वज्ञ (भगवान ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में निवास करते है) और मंदिरों में दिव्य मंगल विग्रह (अर्चाविग्रह) के रूप में विद्यमान हैं । विभिन्न आऴ्वारों को पेरुमाळ के विभिन्न रूपों के प्रति लगाव था।
पराशर: ओह – ठीक जैसे हम श्रीरंगनाथ को इतना पसंद करते हैं, क्या प्रत्येक आऴ्वार के अपना इष्ट भगवान् थे?
आण्डाल दादी: हाँ। मुदल् आऴ्वार (पहले ३ आऴ्वार – श्रीसारयोगी स्वामीजी, श्रीभूतयोगी स्वामीजी ,श्रीमहदाह्वययोगी स्वामीजी ) प्रभु की सर्वोच्चता से बहुत जुड़े थे – जैसा परमपद में देखा गया । श्रीभक्तिसार स्वामीजी को सर्वव्यापी भगवान् के प्रति महान लगाव था — भगवान् हम सभी के हृदय के अंदर विद्यमान हैं । श्रीशठकोप स्वामीजी), श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी और श्रीआण्डाळ देवी का भगवान् कृष्ण के प्रति अत्यधिक लगाव था । कुळशेखराऴ्वार स्वामीजी का भगवान श्री राम की ओर बढ़िया लगाव था ।श्रीभक्ताङ्घ्रिरेणु स्वामीजी औरयोगिवाहन स्वामीजी का भगवान श्रीरंगराज (श्री रंगम के राजा) के प्रति महान लगाव था ।परकाल स्वामीजी भगवान् के समस्त दिव्य मंगल विग्रह (अर्चाविग्रह) के प्रति बहुत बड़ा लगाव था ।
व्यास और पराशर: दादाजी आपने मधुरकवि-आऴ्वार स्वामीजी को छोड़ दिया है ।
आण्डाल दादी: हां – बहुत अच्छा अवलोकन है । मधुरकवि-आऴ्वार स्वामीजी पूरी तरह श्रीशठकोप स्वामीजी के प्रति समर्पित थे ।
आण्डाल दादी पेरूमाळ के लिए कुछ फूल खरीदने के लिए एक फूल विक्रेता की दुकान पर रुक जाती है ।
दादी: पराशर, क्या आप अब हमें प्रत्येक आऴ्वार के बारे में बता सकते हैं ।
आण्डाल दादी: निश्चित रूप से । लेकिन अब हम मंदिर में पहुंचे हैं । निश्चित रूप से। हम अंदर जाकर भगवान के दर्शन करेंगे और उस प्रभु की महिमा गाएंगे । अगली बार, मैं विस्तार से प्रत्येक आऴ्वार के बारे में विस्तार मे समझाऊंगी ।
व्यास और पराशर: दादी ! ठीक है । आइए हम चलें – हम भगवान् नरसिंह को देखने के लिए और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते ।
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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