श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
सुंदर रविवार की सुबह आण्डाल दादी अपने घर के बाहर बरामदा में बैठति हैं और भगवान विष्णु के लिए माला बनाती हैं। व्यास और पराशर इधर आओ और मेरे बगल में बरामदे पर बैठो| वे दोनों आण्डाल दादी को उत्सुकता से देखते हैं|
व्यास: दादी माँ आप क्या कर रहे हो?
आण्डाल दादी: भगवान विष्णु के लिए माला बना रही हूं, जो मुझे कुछ आल्वार कि याद दिलाता है? क्या आप उनमें से एक आल्वार के बारे में अब सुनना चाहेंगे?
पराशर : ओह ज़रूर दादी माँ, हम उत्सुकता से इसके लिए इंतजार कर रहे हैं |
आण्डाल दादी: ये हुई ना बात..मेरे अछे पोते |तो मैं आपको पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) के बारे में बताती हुन | उनका जन्म आनी महीने स्वाधीनक्षत्र में श्री विल्ली पुथथुर में हुआ था। उन्हें पट्टरपीरान भी कहा जाता था | वोह भगवान वाटपत्रसाईं के लिए माला बनाते थे | एक उत्कृष्ट दिन, पंडियन राज्य पर शासन करने वाले राजा ने विद्वानों के लिए एक चुनौती रख दी। उन्होंने घोषणा की कि वोह उस व्यक्ति को सोने के सिक्कों से भरा थैला प्रदान करेगा जो यह स्थापित कर सकता है कि सर्वोच्च देवता कौन है|
व्यास: दादी यह तो बहुत मुश्किल हुआ होगा, नहीं?
आण्डाल दादी: पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) के लिए ऐसा नहीं था। अपने भक्ति और पेरुमल की दया के कारण, वोह राजा के अदालत में गए और उन्होंने स्थापित किया कि भगवान नारायण वेदम के माध्यम से सर्वशक्तिमान हैं। राजा बहुत खुश हुआ और उसने इनाम की राशि पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) को दिया और उन्हें एक शाही हाथी पर मदुरै की सड़कों पर भेज दिया।
पराशर : दादी यह तो बहुत सुन्दर नज़ारा हुआ होगा|
आण्डाल दादी: हाँ परसार, वो बहुत सुन्दर नज़रा हुआ होगा। और यही वजह है कि पेरुमल स्वयं अपने गरुड़ की सवारी से परमपदम से नीचे आये। हालाँकि पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) एक हाथी के ऊपर सवार थे, वोह तब भी विनम्रथा और पेरुमल की सुरक्षा के बारे में चिंतित थे| इसलिए उन्होंने तिरुपल्लान्डु गाया और सुनिश्चित किया कि पेरुमल संरक्षित हैं। इसी तरह वोह पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) के रूप में जने जाने लगे। उन्होंने पेरियालवर थिरुवाइमोल्हि भी गाया|
व्यास: ओह। हाँ दादी मैं पल्लानडु पल्लानडु से परिचित हुन|यही है जो शुरुआत में हर रोज मंदिर में पढ़ा जाता है| हमने मंदिर में यह सुना है।
आण्डाल दादी: हाँ, तुम सही हो, पेरियाऴ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी) के थिरूपप्लंडु को हमेशा शुरुआत और अंत में भी पढ़ा जाता है।
पराशर: यह तो बहुत अच्छी बात है दादी |हम इसे भी सीखेंगे और पेरूमल के सामने इसे पढ़ना शुरू करेंगे।
आण्डाल दादी: मुझे यकीन है, आप जल्द ही ऐसा करना शुरू कर देंगे। वैसे, वोह अंडाल के पिता भी थे, जिन्होंने सबसे लोकप्रिय थिरूपवाई गाया था| बाद में आपको अंडाल के बारे में अधिक बताउंगी, आइए हम चले और पेरुमल को माला पेश करें।
आण्डाल दादी माला पेरुमल को पेश करने के लिए व्यास और परसार के साथ श्री रंगनाथन मंदिर की तरफ बढ़ना शुरू करति हैं |
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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