श्रीवैष्णव – बालपाठ – उय्यक्कोण्डार् (श्री पुण्डरिकाक्ष स्वामीजी) और मणक्काल् नम्बि (श्री राममिश्र स्वामीजी)

श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

बालपाठ

<< नाथमुनिगळ् (श्री नाथमुनि स्वामीजी)

 

पराशर और व्यास अपने मित्र वेदवल्लि के साथ आण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते हैं। आण्डाल दादी उन्हें अपने हाथों से प्रसाद के साथ स्वागत करती है।

आण्डाल दादी : यहां इस प्रसाद को लें और मुझे बताएं कि आपकी नयी मित्र कौन है।

व्यास : दादी, यह वेदवल्लि है जो छुट्टियों के लिए कान्चीपुरम् से आयी है | हम उसे हमारे साथ लाए ताकि यह आचार्यों की महिमाओं पर आपकी कहानियों को सुन सके।

पराशर : दादी आज हम किसी त्यौहार का जश्न मना रहे हैं?

आण्डाल दादी : आज आचार्य उय्यक्कोण्डार् स्वामीजी का तिरुनक्ष्त्र है जिन्हे पुण्डरिकाक्षर् और पद्माक्षर स्वामी भी कहा जाता है।

व्यास: दादी, क्या आप हमें इन आचार्य के बारे में बता सकती हैं?

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आण्डाल दादी: उय्यक्कोण्डार् स्वामीजी का जन्म चैत्र मास कृतिका नक्षत्र को तिरुवेळ्ळऱै (श्वेत गिरि) में हुआ था। इनके माता पिता द्वारा इनका नामकरण तिरुवेळ्ळऱै एम्पेरुमान् के नाम पर ही किया गया। नाथमुनि स्वामीजी के शिष्यों में , कुरुगै कावलप्पन् के साथ साथ इन्हें भी प्रमुख माना जाता है। नाथमुनि जी को नम्माळ्ळवार के अनुग्रह से अष्टांग योग का दिव्य ज्ञान मिला था।

पराशर: दादी, यह योग क्या है?

आण्डाल दादी: यह योग का एक प्रकार है जिसके माध्यम से किसी भी शारीरिक गतिविधियों के बारे में सोचे बिना भगवान का अविराम अनुभव कर सकता हैं। जब नाथमुनि उय्यक्कोण्डार् से अष्टांग योग सीखने में उनकी रूचि के बारे में पूछते हैं तब वे उन्हें जवाब देते हैं की “पिणम् किडक्क मणम् पुणरलामो ” माने जहाँ संसारी अज्ञान के कारण भौतिक जगत् में दुखि हैं वहाँ वे कैसे आनंद से भगवद् गुणानुभव कर सकते हैं।

पराशर: दादी, क्या वह केहते हैं कि किसीके मरने पर कोई आनंद नहीं ले सकता है? कौन मर गया है?

आण्डाल दादी: शानदार पराशर! उन्होंने कहा कि जब इस दुनिया में इतने सारे लोग पीड़ित हैं, तो वह व्यक्तिगत रूप से भगवान का आनंद लेने के बारे में कैसे सोच सकते हैं। यह सुनकर, नाथमुनी बेहद प्रसन्न थे और उय्यक्कोण्डार् की महानता की सराहना की। उन्होंने उय्यक्कोण्डार् और कुरुगै कावलप्पन् दोनों को इश्वर मुनी के बेटे (नाथमुनी के अपने पोते, जो इस् संसार में आने वाले थे) को अर्थ के साथ अष्टांग योग और दिव्य प्रबन्धम को सिखाने के निर्देश दिए।

व्यास: दादी, क्या उय्यक्कोण्डार् का कोई शिष्य था?

दादी : मणक्काल् नम्बि (राममिश्र स्वामीजी ) उनका मुख्य शिष्य थे। परमापद जाने के समय, मणक्काल् नम्बि (राममिश्र स्वामीजी ) ने उत्तराधिकारी के बारे में उनसे (उय्यक्कोण्डार्) पूछा और उय्यक्कोण्डार् ने संप्रदाय की देखभाल करने के लिए स्वयं मणक्काल् नम्बि को निर्देश दिया। उन्होंने यामुनैत्तुऱैवर् (यामुनाचार्य स्वामीजी / ईश्वर मुनी के बेटे) को अगला आचार्य बनाने के लिए तैयार करने के लिए मणक्कऽल् नम्बि को भी निर्देश दिया।

पराशर: दादी, क्या आप हमें मणक्काल् नम्बि (राममिश्र स्वामीजी ) के बारे में बता सकती हैं?

दादी : उनका मूल नाम राम मिश्र था। उनका जन्म माघ मास , माघ नक्षत्र के महीने में श्रीरंगम के पास कावेरी नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गाँव मणक्कल् में हुआ था। माधुरकवी आळ्ळवार की तरह जो नम्माळ्ळवार् के लिए बहुत समर्पित थे, मणक्कल् नम्बि उय्यक्कोण्डार् के लिए बहुत समर्पित थीं। उय्यक्कोण्डार् की पत्नी के निधन के बाद, उन्होंने खाना पकाने के कैङ्कर्य को ग्रहण किया और अपने आचार्य की हर व्यक्तिगत आवश्यकता में भाग लिया। एक बार उय्यक्कोण्डार् की बेटियां नदी में स्नान करने के बाद वापस लौट रही थीं, तब रास्ते में कीचड़ के कारण वह आगे नहीं बढ़पाती। यह देख मणक्कल् नम्बि छाती के बल कीचड़ पर लेट जाते है और अपने आचार्य की पुत्रियों को अपनी पीठ पर चलते हुए कीचड़ पार करने को कहते है। उनके आचार्य उय्यक्कोण्डार् को जब इस घटना का वृतांत मिला , तब वह मणक्कल् नम्बि की आचार्य चरणों में भक्ति और जिम्मेदारी वहन करने की क्षमता को देख अत्यंत ही प्रसन्न हुए ।

समूह में बच्चे: दादी, अगली बार जब हम मिलेंगे तो क्या आप हमें आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) की कहानी बता सकती हैं?

दादी खुशी से कहती हैं, “में बहुत खुश हूँगी आपको यामुनाचार्य स्वामीजी की कथा सुनाने में जब हम अगली बार मिलेंगे ” और बच्चे अपने घरों को जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2015/10/beginners-guide-uyakkondar-and-manakkal-nambi/

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