श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः
पराशर, व्यास, ववेदवल्ली और अतुलाय ने अण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते है |
दादी: स्वागत है बच्चों। अपने हाथ-पैर धोएं। मैं तुम्हें पेरुमाल को चढ़ाए हुए फल दूँगी । क्या आपने आलवन्दार स्वामीजी का तिरुनक्षत्र मनाया था?
पराशर : जी, हमने उत्सव बहुत आनंद के साथ मनाया था । आलवन्दार स्वामीजी की सन्निधि में हमें अच्छे दर्शन हुए। वहाँ, उन्होंने तिरुनक्षत्रम को भव्य तरीके से मनाया। हमारे पिता जी ने हमें आलवन्दार स्वामीजी वालि तिरुनामम सिखाया था और हमने अपने घर में भी इसका पाठ किया।
अण्डाल दादी: सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।
वेदवल्ली : पिछली बार आपने हमसे कहा था कि आप कैंकर्य का महत्व बताएंगे | दादीजी क्या आपको वह स्मरण है?
अण्डाल दादी: हाँ, मुझे स्मरण है। मुझे बहुत खुशी है कि आपको भी स्मरण है और आपने मुझसे यह पूछा। एम्पेरुमान एवं उनके भक्तों के प्रति जो सेवा की जाये उसे कैंकर्य कहते है | हमारे कैंकर्य भगवान जी की प्रसन्नता के लिए होना चाहिए और जिससे उनका हृदय प्रसन्न रहे |
व्यास: अगर एम्पेरुमान प्रसन्न हो जायेंगे, तो हम उनके लिए कैंकर्य करने के लिए बहुत उत्सुक हैं। दादीजी हम कैंकर्य की कैसे कर सकते हैं?
आण्डाल दादी : हम अपने मन से (मानसिक कैंकर्य), अपने शब्दों से(वाचिक) और हमारे शरीर से (शारीरिक कैंकर्य) कैंकर्य कर सकते हैं। आण्डाल नच्चियार ने भी यही कहा था उसके तिरुप्पवई ५वें पाशुराम में कि हम उनकी महिमा गा सकते हैं, उनके बारे में सोच सकते हैं और उनको फूल
अर्पण कर सकते हैं। इस तरह हम उनके मन को प्रसन्न कर सकते हैं। एम्पेरुमान के दिव्य गुणों के बारे में सोचना मानसिक कैंकर्य के अंतर्गत आता है। उनकी दिव्य महिमा की स्तुति/गायन करना और उनके भक्तों की महानता के बारे में बोलना, आल्वार के भजनों और पूर्वाचार्यों के स्तोत्रों का पाठ करना एम्पेरुमान को बहुत प्रसन्न करता है। यह कैंकर्य वाचिक कैंकर्य के अंतर्गत आते हैं। एम्पेरुमान के मंदिर परिसर/सन्निधि की सफाई करना, उनके परिसर/संनिधि को कोलम(रंगोली ) (सुंदर आकृतियाँ) बनाकर सजाना, माला बनाकर, उनके तिरुवाराधनम के लिए चंदन का लेप पीसना आदि शारीरिक कैंकर्य के अंतर्गत आते हैं। सबसे पहले, हमें अपने घरों में एम्पेरुमान
को संभावित कैंकर्य करना चाहिए । एम्पेरुमान आप जैसे बच्चों द्वारा किए गए कैंकर्य को सहर्ष स्वीकार करते हैं।
पराशर : दादी जी आपने यह बहुत अच्छी तरह समझाया है । हम अपने घर पर अपने पिता द्वारा किए गए तिरुवाराधनम में खुशी-खुशी भाग लेंगे।
दादी: सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।
अतुलहाय : वेदवल्ली और मैं कोलम एवं माला बनाने आदि में भाग लेंगे।
अण्डाल दादी : अतुलहाय सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एम्पेरुमान के भक्तों के लिए कैंकर्य करना, एम्पेरुमान के कैंकर्य करने से अधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, लक्ष्मण ने श्री राम के लिए सभी कैंकर्य किए, लेकिन शत्रुघ्न ने श्री राम के प्रिय भाई और भक्त भरत के लिए कैंकर्य किया। इसके अलावा, नम्माळ्वार स्वामी अपने प्रिय कृष्ण को अपना भोजन, पानी और सुपारी / मेवा मानते थे, लेकिन मधुरकवि आळ्वार नम्माळ्वार को अपना एकमात्र भगवान मानते थे। यह एम्पेरुमान के भक्तों की महानता पर जोर देता है। इसलिए, हमें हमेशा एम्पेरुमान के भक्तों के भक्त बने रहना चाहिए।
अतुलहाय : जैसा कि आपने कहा, हम निश्चित रूप से एम्पेरुमान के भक्तों के कैंकर्य करने को प्राथमिकता देंगे। दादीजी लेकिन हम भक्तों की सेवा कैसे कर सकते हैं ?
अण्डाल दादी : जब भक्त हमारे घरों में आते हैं, तो हमें उन्हें प्रणाम करना चाहिए और उन्हें सहज महसूस कराना चाहिए। हमें आवश्यकतानुसार उनकी सहायता करनी चाहिए। हमें उनसे एम्पेरुमान, आलवारों और आचार्यों के बारे में अद्भुत चरित्रों के बारे में भी जानना चाहिए और उनसे जितना हो सके सीखने का प्रयास करना चाहिए। हमें उनसे विनम्रतापूर्वक पूछना चाहिए कि क्या उन्हें अपने कैंकर्यों में किसी सहायता की आवश्यकता है और उनका समर्थन करना चाहिए। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे कोई भी भक्तों के लिए कैंकर्य में संलग्न हो सकता है।
अतुलहाय : अवश्य दादीजी । हमें अब इसके बारे में एक विचार मिलता है। हम निश्चित रूप से ऐसे अवसरों की तलाश करेंगे।
(शेष तीन बच्चे (एक साथ बोलते हुए ): जी दादीजी) ।
दादी: प्यारे बच्चों सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।
वेदवल्ली : दादीजी, आपकी बातें सुनना बहुत दिलचस्प है। कृपया हमें और बताएं।
आण्डाल दादी: मुझे इसे और समझाने में बहुत खुशी होगी लेकिन अब बाहर बहुत अंधेरा हो रहा है। अगली बार हम किसी अन्य विषय पर चर्चा करेंगे। अब आप सभी अपने-अपने घरों को जाएं।
बच्चे अपनी दादी के साथ हुई बातचीत के बारे में सोचकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए निकल जाते हैं।
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2018/10/beginners-guide-kainkaryam/
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org