श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
पराशर, व्यास ने अंडाल दादी के घर में वेदवल्ली और अथथुले के साथ प्रवेश किया।
दादी : स्वागत बच्चों | अपने हाथ और पैर धो लो। थिरुआदिप पुरम उत्सव त्यौहार का प्रसाद यहां है, यह हमारे मंदिर में हुआ था। आज, हम अंडल पिराट्टी से बहुत प्रिय किसी पर अपनी चर्चा शुरू करेंगे, जिसे वह अपने भाई के रूप में बुलाती है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह कौन है ?
व्यास : नहीं दादी , अंडाल जी के भाई कौन थे ? क्या अंडाल जी का कोई भाई भी था ?
दादी : हाँ, वह उसका भाई था, जन्म से नहीं बल्कि प्यार और स्नेह से। उन्हें गोदाग्रज या कोयिल अन्नन कहा जाता था, जो हमारे रामानुजर के अलावा कोई नहीं है! अग्रजन का अर्थ संस्कृत में बड़े भाई होता है । गोदा जी द्वारा उनको बड़ा भाई मानना, इसीलिए उनको गोदाग्रज कहते है| स्वयं श्रीअनन्तशेष के अवतार, भगवत रामानुज स्वामीजी के पिता श्री केशवदीक्षितार और माता श्रीमती कान्तिमति देवी थी । भगवत रामानुज स्वामीजी का जन्म दक्षिणात्य चैत्र मास के आर्द्रा नक्षत्र के दिन वर्तमान तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदुर नामक गांव में हुआ। श्रीपेरूंबुदूर मैं श्री तिरुवल्लिक्केणि के श्री पार्थसारथी भगवान के अंशावतार के रूप मैं जन्म हुआ ।
पाराशर : दादी, क्या गोदा जी का अवतरण रामानुज स्वामीजी से पहले नहीं हुआ था? फिर रामानुज स्वामीजी गोदा जी के बड़े भाई कैसे हुए ?
दादी : पाराशर, बहुत अच्छा प्रश्न है | जैसे मैंने कहा था, रामानुज स्वामीजी गोदा जी के जन्म से भाई नहीं थे बल्कि अपने कर्मो के द्वारा उनके भाई थे | अंडाल, भगवान जी के प्रति उनका प्रेम स्नेह बहुत था, इसीलिए उनकी इच्छा थी की, भगवान सुन्दरबाहु ( तिरुमालिरुन्सोलै) को १०० घड़े अक्कर वडिसल और १०० घड़े मक्खन का भोग लगाए | लेकिन उस समय गोदा जी बाल्या अवस्था में होने से अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सकी | रामानुज स्वामीजी नाच्चियार थिरुमोलही पाशुरम का पाठ करते है जहाँ गोदा जी अपनी इच्छा को पूरा करने की इच्छा प्रकट करती है | फिर रामानुज स्वामीजी १०० घड़े अक्कर वडिसल और १०० घड़े मक्खन का भोग भगवान सुन्दरबाहु ( तिरुमालिरुन्सोलै) को गोदाजी की और से लगाते है | भगवान जी को भोग लगाने के बाद रामानुज स्वामीजी जब श्रीविल्लिपुत्तूर जाते है और श्रीविल्लिपुत्तूर पहुँच कर, गोदाजी उनका अभिनन्दन करती है और उनको अपना श्रीरंगम से बड़ा भाई बोल कर संबोधित करती है, इसीलिए रामानुज स्वामीजी का एक नाम कोयिल अन्नन है | गोदाजी रामानुज स्वामीजी को बड़ा भाई इसीलिए कह कर संबोधित करती है क्यूँकि भाई वह होता है जो बहन का ध्यान रखे और अपनी बहन की इच्छा और मनोरथ पूर्ण करे |
अतुलाय, क्या आप तिरुप्पावै के पाशुरम का उच्चारण कर सकते हो ? मुझे स्मरण है की आप स्कूल बहुरूप पोशाक प्रतियोगिता में अभिनीत किया था और कुछ पाशुरम का उच्चारण भी किया था ?
(फिर अतुलाय कुछ पाशुरम का उच्चारण करती है )
दादी : क्या आप जानते है की मैंने क्यों आपको आज उच्चारण के लिए कहा था ? क्योंकि, रामानुज स्वामीजी को भी तिरुप्पावै जीयर के नाम से जाना जाता है | रामानुज स्वामीजी सदैव प्रतिदिन तिरुप्पावै का उच्चारण करते थे | महान विद्वान होने के बाबजूद भी, रामानुज स्वामीजी तिरुप्पावै को अपने मन के पास थी और उसका प्रतिदिन उच्चारण करते थे | क्या आपको मालूम है क्यों ?
वेदावल्ली : इसीलिए यह सिखने में सरल है ? मुझे सभी ३० पाशुरम आते है |
दादी (मुस्कराते हुए ) : वेदावल्ली, यह तो बहुत अच्छा है | तिररुप्पवाई सीखना सरल ही नहीं, परन्तु ३० पाशुरम में हमारे संप्रदाय का सार है | तिरुप्पावै का ज्ञान वेदो में जो ज्ञान है उसके समान है | इसीलिए इसको “वेदं अनैतत्तुक्कुम विठ्ठागुम” —- ३० पाशुरम में सर्व वेदो का सार निहित है |
अतुलाय : दादी, रामानुज स्वामीजी के तो बहुत सारे नाम थे | पहले अपने इळयाळ्वार कहा, फिर रामानुज, और अब कोयिल अन्नन और तिरुप्पावै जीयर |
दादी : हाँ | उनके यह सब नाम हमारे सम्प्रदाय के आचार्यो ने, गोदा जी ने और भगवान जी ने स्नेह पूर्वक दिए | हमने रामानुज स्वामीजी के सभी आचार्यो के बारे में जाना और उनका रामानुज स्वामीजी के जीवन में योगदान जो उन्होंने दिया | चलिए रामानुज स्वामीजी के विभिन्न प्रकार के नाम देखते है और देखे की यह नाम उनको किस किस ने दिए है |
उनमे कुछ नाम इस प्रकार है,
१) इळयाळ्वार – यह नाम रामानुज स्वामीजी के मामाजी, पेरिय तिरुमलै नम्बि (श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी) ने उनके नामकरण के दिन दिये थे ।
२) श्रीरामानुज – उनके आचार्य श्रीपेरियनम्बि(श्री महापूर्ण स्वामीजी) ने दीक्षा के समय दिये थे।
३) यतिराज और रामानुज मुनि – श्री देवपेरुमाळ (भगवान वरदराज, कांची) ने उनके सन्यास दीक्षा के समय दिये थे।
४) उडयवर – नम्पेरुमाळ (भगवान रंगनाथ, श्रीरंगम ) ने दिया था।
५) लक्ष्मण मुनि – तिरुवरंगपेरुमाळ अरयर(श्री वाररंगाचार्य स्वामीजी) ने दिया था।
६) एम्पेरुमानार – जब श्रीरामानुजाचार्य ने गुरु से प्राप्त मन्त्र वहां उपस्थित सारे लोगों को बिना पूछे ही बतला दिया था तब श्री तिरुक्कोष्टियूर नम्बि(श्री गोष्टिपुर्ण स्वामीजी) ने यह नाम दिया था ।
७) शठगोपनपोन्नडि (शठकोप स्वामीजी की पादुका) – तिरुमलय अण्डाण(श्री मालाकार स्वामीजी) ने दिया था ।
८) कोयिल अन्नन – भगवान सुन्दरबाहु ( तिरुमालिरुन्सोलै) को १०० घड़े अक्कर वडिसल और १०० घड़े मक्खन का भोग लगाकर जब श्रीरामानुजाचार्य स्वामीजी ने माँ गोदाम्बाजी का प्रण पुरा करके, श्रीविल्लिपुत्तूर दर्शन के लिए आये तब माँ गोदाम्बजी ने दिया था।
९) श्रीभाष्यकार – कश्मीर में शारदा पीठ में श्रीभाष्य पर रामानुज स्वामीजी के विवेचन पर प्रसन्न हो सरस्वती देवी ने प्रदान किया था।
१०) भूतपूरीश्वर – श्रीपेरुम्पुदुर के श्रीआदिकेशव भगवान ने दिया था।
११) देषिकेन्द्रार – श्रीतिरुवेण्कटमुदयन(श्री वेंकटेश भगवान) ने यह नाम प्रदान किये थे ।
इस तरह से, यह संक्षेप में वह सब नाम है जो रामानुज स्वामीजी को बहुत सारे आचार्यो ने प्रदान किये जिन्होंने रामानुज स्वामीजी का ध्यान रखा और उनका ज्ञान संवर्धन किया ताकि हमारा सम्प्रदाय और बढ़ सके और आलवन्दार स्वामीजी के बाद रामानुज स्वामीजी इसको आगे ले जा सके | आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के विशेष अनुग्रह के द्वारा उनको सबसे पहले तिरुक्काच्चिनम्बि (श्री काँचीपूर्ण स्वामीजी) से श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के बारे में बतलाते है, बाद में श्री पेरियनम्बि(श्री महापूर्ण स्वामीजी), इळयाळ्वार को पंचसंस्कार दीक्षा प्रदान करते हैं, तिरुवायमोली का अनुसंधान थिरुमलाई अण्डाण जी से सीखते है, हमारे सम्प्रदाय का सार थिरुवरंगपेरुमल अरैयर जी से सीखते है, तिरुक्कोष्टियुरनम्बि (गोष्ठिपूर्ण स्वामीजी) से श्रीसम्प्रदाय के गोपनीय मंत्र सीखते है एवं रामायण का सार और उनके श्लोको का सुन्दर वर्णन अपने मामाजी पेरिया थिरुमलाई नम्बि जी से सीखते है | इस प्रकार, आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के ६ मुख्या शिष्यों ने अपने गुरूजी के प्रति अपनी सेवा कैंकर्य किये |
वेदावल्ली : दादी, जब आप आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के बारे में बता रही थी, अपने कहा था रामानुज स्वामीजी आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के शिष्य नहीं बन सके पर रामानुज स्वामीजी ने प्रण लिए था की वह आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के मनोरथो की पूर्ति करेंगे | वह क्या थी ? रामानुज स्वामीजी को कैसे पता चला की आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) के क्या अभिलाषाएँ थी |
दादी : एक बहुत सुन्दर प्रश्न है | जब आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) ने पेरिया नम्बि स्वामीजी को रामानुज स्वामीजी को श्री रंगम में लाने आज्ञा दिए, तो पेरिया नम्बि स्वामीजी कांचीपुरम जाते है | जब तक पेरिया नम्बि स्वामीजी रामानुज स्वामीजी के साथ श्री रंगम से लौट कर आते है, तब तक आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) वैकुण्ठ गमन कर इस संसार को छोड़ देते है| श्री रंगम पहुंचने पर, पेरिया नम्बि स्वामीजी और रामानुज स्वामीजी को जब इसके बारे में पता चलता है | जब रामानुज स्वामीजी आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) का दिव्या रूप देखे, उन्होंने उनके एक हाथ की ३ उंगलिया मुड़ी हुयी (बंद) देख अचंभित होते हैं। इळयाळ्वार् भी यह देख उपस्थित शिष्य और वैष्णव समूह से चर्चा कर इसका कारण जानने का प्रयास करते है , सबकी सुन इस निर्णय पर पहुँचते है की आलवन्दार स्वामी की ३ इच्छाएँ अपूर्ण रह गयी , रामानुज स्वामीजी उसी समय प्रण लेते है की वह आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) इच्छाएँ पुराण करेंगे | वे इच्छाएँ इस प्रकार थी, :
१. व्यास और पराशर ॠशियों के प्रति सम्मान व्यक्त करना ।
२. नम्माल्वार् के प्रति अपना प्रेम बढ़ाना ।
३. विशिष्टा द्वैत सिद्धान्त के अनुसार व्यास के ब्रह्म सूत्र पर श्रीभाष्य की रचना करना (विश्लेष से विचार/चर्चा करना ) लिखना । श्रीभाष्य टिका (व्याख्या) हेतु श्री कूरत्ताळ्वान के साथ कश्मीर यात्रा पर जाते है, बोधायनवृत्ति ग्रन्थ प्राप्त कर श्री बादरायण के ब्रह्मसूत्रों पर टिप्पणि पूरी करते है |
तब इळयाळ्वार् प्रण लेते है की, आलवन्दार स्वामी के यह ३ इच्छाएँ वह पूर्ण करेंगे, इळयाळ्वार् के प्रण लेते ही आळवन्दार् स्वामी की तीनो उंगलिया सीधी हो जाती हैं । यह देखकर वहां एकत्रित सभी वैष्णव, और आलवन्दार स्वामी के शिष्य अचंभित हो खुश हो जाते हैं और इळयाळ्वार् की प्रशंसा करते हैं। आळवन्दार् स्वामी की परिपूर्ण दया, कृपा कटाक्ष और शक्ति उन पर प्रवाहित होती हैं। उन्हें श्री वैष्णव संप्रदाय दर्शन के उत्तराधिकारी पद पर प्रवर्तक/ निरवाहक चुन लिये जाते हैं । इळयाळ्वार् को आळवन्दार् स्वामी का दर्शन का सौभाग्य प्राप्त न होने का बहुत क्षोभ हुआ, वे दुखित मन से सब कैंकर्य पूर्ण करके , बिना पेरिय पेरुमाळ् के दर्शन किये कान्चिपूर् लौट जाते हैं ।
व्यास : लेकिन दादी, किसी का शरीर ऐसे कैसे उत्तर दे सकता है जैसे की आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) की मुड़ी हुयी उंगलिया रामानुज स्वामीजी की प्रतिज्ञा सुन कर ?
दादी : व्यास, जो संबंध रामानुज स्वामीजी का और आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) था वह शारीरिक अनुभव से बहार थी | यह संबंध ऐसे था जैसे मन और आत्मा का संबंध जैसा | क्या आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) ने रामानुज स्वामीजी को अपनी अंतिम ३ इच्छाएँ बताई थी ? यह कैसे हो सकता है ? व्यास, इस प्रकार का संबंध होता है | ठीक उस प्रसंग की तरह जहाँ वरदराज भगवान जी रामानुज स्वामीजी की शंकाओं का समाधान करते है बिना रामानुज स्वामीजी के बताये की उनकी शंकाएँ क्या है | ऐसे संबंध मन और आत्मा से सम्पन होते है और न की शरीर के द्वारा | इस तरह का संबंध था रामानुज स्वामीजी का और आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) का |
अब तक हमने रामानुज स्वामीजी और विभिन्न आचार्यो ने जो उनके जीवन से संबंध रखते थे, वह सब देखा | में आपको कल वह सब बताउंगी की कैसे रामानुज स्वामीजी एक महान आचार्य बने और कैसे बहुत से शिष्यों ने रामानुज स्वामीजी के जीवन में उनका अनुसरण किया |
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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