श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः
पराशर, व्यास, ववेदवल्ली और अतुलाय ने अण्डाल दादी के घर में प्रवेश किया।
दादी : स्वागत बच्चो | आप सब अपने हाथ एवं पॉंव धोकर आयो में तुम्हे भगवान का प्रसाद दूंगी | क्या आप जानते हो की इस मास में क्या विशेष है ?
वेदवल्ली : दादी में बताती हूँ | मुझे याद है अपने पिछली बार हमें क्या बताया था | इस में “सुडीक कोडत सुढरकोड़ी”; अण्डाल नाच्चियार अवतार मास | उनका अवतार दिन तमिल मास आदि में एवं पुरम नक्षत्र हो तब होता है |
पराशर : हाँ | इसी मास में नाथमुनिगल स्वामीजी के पर पौत्र आळवन्दार स्वामीजी का भी अवतार दिवस होता है | तमिल मास आदि एवं नक्षत्र उत्तरदम में आलवन्दार स्वामी की तिरुनक्षत्र होता है | क्या मैंने ठीक कहा दादी जी ?
दादी : सही कहा | हमने अब तक आळ्वार एवं आचार्यो के बारे में में देखा एवं सुना | अगली बार हम सर्वोत्तम प्रथाएं जो हम प्रतिदिन आचरण करते है वह सीखेंगे |
अतुलहाय : दादी, सर्वोत्तम प्रथाएं कौन सी है ?
दादी : हमारी भलाई के लिए शास्त्रों द्वारा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं, उन नियमों का पालन करना अनुष्ठानम (सर्वोत्तम अभ्यास) कहा जाता है। उदाहरण के लिए: हमें सुबह जल्दी उठकर स्नान करना होता है। यह हमारे लिए निर्धारित एक नियम है। इसे हमारी अण्डाल नच्चियार ने अपनी तिरुप्पावै में “नाटकले नीराडि” के रूप में भी बताया था।
व्यास : हाँ दादी, मुझे याद है यह तिरुप्पावै का दूसरा पाशुरम है न |
दादी : बिल्कुल सही | बिल्कुल सही! प्रात:काल जब हम एम्पेरुमान का नाम सोचते और जपते हैं, तो हमारा मन शुद्ध हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर सुबह स्नान करने के बाद हमें थिरुमन कप्पू पहनना चाहिए और जिन लोगों का उपनयनम हुआ है, उन्हें संध्यावंदनम और अन्य दैनिक कर्मानुष्ठान करना चाहिए।
पराशर एवं व्यास : दादी जी , हमें नित्य कर्मानुष्ठान बिना रुके करने चाहिए |
दादी : सुनकर प्रसन्नता हुई |
वेदवल्ली : हम खुशी से थिरुमान काप्पू धारण कर रहे हैं। कृपया थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) पहनने के पीछे का महत्व और कारण बताएं। हम दादी सुनने के लिए बहुत उत्सुक हैं।
दादी : ठीक है, सुनो। थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) – काप्पू का अर्थ है रक्षा (संरक्षण)। एम्पेरुमान और लक्समी पिराट्टि हमारे साथ रहते हैं और हमेशा हमारी रक्षा करते हैं। थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) धारण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हम उनके भक्त हैं। इसलिए हमें खुशी से और बहुत गर्व के साथ पहनना चाहिए।
वेदवल्ली : हम थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) के महत्व को समझ चुके हैं। सुनकर बहुत अच्छा लगा |
हर कोई (सहगान में) : जी दादी |
दादी : बहुत अच्छे बच्चों | इसी तरह हमारे कल्याण के लिए शास्त्रों द्वारा कई अन्य नियम निर्धारित किए गए हैं। मैं उनमें से कुछ को अभी साझा करूंगी, ध्यान से सुनें। हमें खाना खाने से पहले और बाद में हाथ-पैर धोने चाहिए। क्योंकि जब हम स्वच्छ रहेंगे तभी हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें केवल वही खाना चाहिए जो पेरुमाल को भोग लगाया जाता है। हम जो भोजन करते हैं वह हमारे चरित्र को निर्धारित करता है। पेरुमाल के प्रसाद के सेवन से सत्व गुण (अच्छे गुण) भगवत कृपा से विकसित होंगे।
पराशर : हमारे घरों में, हमारी माता जी खाना तैयार करती है और हमारे पिताजी भगवान जी को भोग लगाते है |भगवान जी का चरणामृत लेकर ही हम प्रसाद पा सकते है |
दादी : अच्छी आदत | इसको धारण करके रखना बच्चो | मुस्कुराते चेहरों के साथ चारों ने कहा ठीक है |
दादी : इसके अलावा हमें आलवारों के कुछ पाशुरामों का पाठ करने के बाद ही प्रसाद लेना चाहिए। पेरुमाल को दिया जाने वाला भोजन हमारे पेट के लिए भोजन है। क्या आप जानते हैं कि हमारी जिह्वा का भोजन क्या है?
अतुलहाय : कृपा करके जिह्वा के भोजन के बारे में बताएं | दादी जी वह क्या है ?
दादी : हाँ प्रिय बच्चो । एम्पेरुमान के दिव्य नामों का जप हमारी जिह्वा का भोजन है। मधुरकवि आळ्वार नम्मलवार को अपना स्वामी मानते थे। मधुरकवि आळ्वार ने अपने कण्णिनुं छीरुथाम्बु में कहा है कि कुरुगुर नंबी (नम्मालवार के नामों में से एक) कहना उनके लिए जिह्वा में शहद चखने जैसा है।
(नम्मलवार स्वामी – मधुरकवि आळ्वार)
वेदवल्ली : मधुरकवि आळ्वार जी की नम्मलवार स्वामी जी क्र प्रति भक्ति बहुत ही हृदयस्पर्शी है और आपने इसे बहुत अच्छी तरह समझाया है दादी जी ।
दादी : सुनकर बहुत अच्छा लगा वेदवल्ली |
व्यास : दादी जी, आपके शब्दों को सुनना बहुत दिलचस्प है। कृपया हमें और बताएं।
दादी : मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी होगी लेकिन अब बाहर बहुत अंधेरा हो रहा है। अब अपने घर जाओ। बच्चे अपनी दादी के साथ हुई बातचीत के बारे में सोचकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए निकल जाते हैं।
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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