श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
<< पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास)
जय श्रीमन्नारायण ।
आळ्वार एम्पेरुमानार् जीयर् तिरुवडिगळे शरणं ।
तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर्, श्रीशैल पूर्ण (पेरिय तिरुमलै नम्बि) और मालादर (तिरुमालै आन्डान्)
पराशर और व्यास आण्डाल दादी के घर आपने मित्र वेदावल्ली के साथ प्रवेश करते है|
दादी : स्वागत वेदावल्ली। अंदर आ जाओ बच्चों|
व्यास : दादी , पिछली बार आपने कहा था की आप हमें रामानुज स्वामीजी और दूसरे आचार्य के बारे में विस्तार से बताएंगी|
पराशर : दादी , क्या आपने हमें यह नहीं बताया था की रामानुज स्वामी जी के बहुत सारे आचार्य थे, सिर्फ पेरिया नम्बि ही नहीं ? दूसरे आचार्य कौन थे दादी ?
दादी : जैसा मैंने आपको पिछली बार बताया था बच्चों, यामुनाचार्य स्वामी जी के बहुत शिष्य थे जो रामानुज स्वामी जी को सम्प्रदाय में लाने के लिए सिखाते थे ! उनमे से जो प्रमुख थे : १) तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) २) गोश्टि पूर्ण (तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि) ३) श्रीशैल पूर्ण (पेरिय तिरुमलै नम्बि) ४) तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) ५) तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) और साथ में श्री महा पूर्ण (पेरिया नम्बि) !|क्या आप को याद है हमने पिछली बार श्री महा पूर्ण (पेरिया नम्बि) स्वामी जी के बारे में बात की थी जब हम पिछली बार मिले थे ! अब, चलो में आपको दूसरे आचार्यो की बारे में और उनकी महत्वपूर्ण योगदान जो उनका हमारे सम्प्रदाय के प्रति रहा उसके बारे में बताउंगी !
पराशर : दादी, रामानुज स्वामी जी के बहुत सारे आचार्या क्यों थे ?
दादी : सभी आचार्यो ने उनको इस तरह से सिखाया की वह एक महान आचार्य बने ! तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) एक बहुत बडा कैङ्कर्य किया श्री रामानुज स्वामीजी को श्रीरंगम लाकर |
व्यास : यह सब कैसे हुआ ? वह कहानी भी हमें बताये दादी |
दादी : उस समय रामानुज स्वामी जी कांचीपुरम में रहते थे और सन्यास आश्रम भी स्वीकार किया! तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी) कांचीपुरम गए और तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) से विनती किये उनको देव पेरुमल के समीप अरैयर् सेवा करने दे ! देव पेरुमल जी ने अर्चक से कहलवाया की उनके सामने ही अरैयर् सेवा किया जाए ! अरैयर् स्वामी जी ने बहुत सेवा भाव से भगवान जी के सामने नृत्य के साथ पाशुरम गाये ! भगवन् उनसे बहुत प्रसन हुए और उनको बहुत सारे उपहार दिए | अरैयर् स्वामी जी बोले की उनको उपहार नहीं चाहिए उनको तो और कुछ चाहिए | भगवान् जी मान गए और बोले ” हम आपको सब कुछ देंगे, आप बोले तो सही” | अरैयर् स्वामी जी तब रामानुज स्वामी जी की तरफ इशारा करते हुए बोले की वह अपने साथ श्री रामानुज स्वामी जी को श्री रंगम ले जाना चाहते है ! भगवन बोले ” हम सोच भी नहीं सकते थे की आप रामानुज स्वामी जी को हमसे मांगेगे; आप कुछ और मांगिये”| अरैयर् स्वामी जी बोले ” आप और कोई नहीं श्री राम जी है जो कभी दो शब्द नहीं बोलते , आप अपने बचन से इंकार नहीं कर सकते ! फिर भगवन जी ने स्वीकार किये और रामानुज स्वामी जी को जाने की अनुमति प्रदान की !
व्यास : दादी कितनी बड़ी चालाकी थी यह| यह अरैयर् स्वामीजी की बुद्धिमता थी की वह पेरुमल स्वामी जी को मना सके !
दादी : बोलो व्यास | उसी समय अरैयर् स्वामी जी ने रामानुज स्वामी जी का हाथ पकड़ा, और श्री रंगम जाने के लिए प्रस्थान किया | फिर , अरैयर् स्वामी जी ने वह महत्व पूर्ण सेवा की श्री रामानुज स्वामी जी को श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में लेकर जिससे हमारा सम्प्रदाय ने और आगे बड़े और उसको उचाईयो तक पहुँचाया |
वेदवल्ली : दादी, अपने कहा सभी आचार्यो ने रामानुज स्वामी जी कुछ न कुछ सिखाया ! अरैयर् स्वामी जी ने उनको क्या सिखाया ?
दादी :आलवन्दार स्वामी जी ने अपने सभी मुख्य शिष्यों को रामानुज स्वामी जी को अपने सम्प्रदाय के बारे में अलग अलग सीखने के लिए निर्देश दिए थे | अरैयर् स्वामी जी को आदेश था की वह सम्प्रदाय का मूल तत्व रामानुज स्वामी जी को बताये ! अब, रामानुज स्वामी जी ने बहुत सुन्दर कृत किये इससे पहले की वह अरैयर् स्वामी जी के पास जाते सीखने के लिए | उन्होंने ६ महीने आचार्य सेवा में कैंकर्य किये कुछ भी सीखने से पहले | यह एक बहुत महत्व पूर्ण पहलु है जो श्री रामानुज स्वामी जी, कुरतालवान स्वामी जी, मुदलियानदान स्वामी जी और बहुत आचार्य जी ने अपने जीवन में किये — अपने आचार्यो का कैंकर्य किये उनसे सीखने से पहले | यह उनकी भक्ति भाव दर्शाता है की वह किससे क्या सीख रहे है और किस उदेश्ये से सीख रहे है | रामानुज स्वामी जी प्रति दिन दूध गरम करते और अरैयर् स्वामी जी को हल्दी का लेप बनाकर देते जब भी आवश्यकता होती !
व्यास : दादी, दूसरे आचार्यो ने रामानुज स्वामी जी को क्या सिखाया ?
दादी: हाँ, में एक एक करके उस पर आ रही हूँ | तिरुमलै नम्बि, रामानुज के मामाजी लगते थे | वह थिरु वेंकट आद्री के पहले निवासी थे | वह प्रति दिन आकाश गंगा जाकर भगवान् जे के सनान के लिए जल लेकर कैंकर्यं करते थे | वह भगवान् जी की सेवा बहुत ध्यान और मन से करते थे | उनके आचार्य जी का आदेश था की वह रामानुज स्वामी जी को श्री रामायण का सार और उनके श्लोको का सुन्दर वर्णन सीखा सिखाये | श्री रामायाण बहुत प्रसिद्ध है हमारे समप्रदायम में शरणागति शास्त्र की तरह | इळयाळ्वार – यह नाम रामानुज स्वामीजी के मामाजी, पेरिय तिरुमलै नम्बि (श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी) ने उनके नामकरण के दिन दिये थे । यही नहीं श्री तिरुमलै नम्बि स्वामी जी ही थे जिन्होंने गोविंदा स्वामी को वापिस श्री वैष्णव सम्प्रदाय में लाये थे जो रामानुज स्वामी जी की ममेरे भाई थे | उनका ज्ञान हमारे सम्प्रदाय के लिए और उनका अलवार स्वामी के पाशुराम के प्रति बहुत लगाव था |
पराशर : दादी, क्या आप हमें तिरुमाळै अण्डाण स्वामी जी के बारे में बता सकते हो ? उन्होंने रामानुज स्वामी जी किस तरह से मदद की ?
दादी : तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) जी को पूरी ज़िम्मेदारी दी गयी थी की वह रामानुज स्वामी जी को थिरु वाईमोली सिखाये | जब रामानुज स्वामी जी श्री रंगम पहुंचे, तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि (श्री गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) जी ने ही उनका मार्ग दर्शन किया था की वह तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) से नम्मालवार (श्री शठकोप स्वामीजी) तिरुवाय्मोळि (सहस्रगीति) को सुने और उनका सार मूल तत्व समझे | यद्यपि, शुरुआत में दोनों में कुछ मतभेद थे क्योंकि यह किसी भी महान विद्वानों के बीच होता है, इसे सुलझाया गया और रामानुज ने अपने आचार्य तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) के आशीर्वाद के साथ अलवार के पाशुरम में छिपे जटिल अर्थों को सीखा | तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी) जी की उनके आचार्य आलवन्दर के लिए इतना सम्मान और भक्ति थी। वह कभी भी अपने आचार्य के मार्ग और शिक्षाओं से दूर नहीं चले और उन्हें रामानुज स्वामी जी को के सिखाया ताकि वह हमारे संप्रदायम के कैंकर्यं को आगे ले जा सकें।
वेदवल्ली : तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि (श्री गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) और तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी) जी ने रामानुज स्वामी जी को क्या सिखाया ?
दादी : में आपको अगली बार जब हम मिलेंगे तब बताउंगी | उनके बारे में बहुत सी रोचक कहानियां है |
व्यास , पराशर और वेदवल्ली (मिलकर ) : हमें अभी कहानी सुनाइए दादी माँ !
दादी : अभी बहुत देर हो गयी है | आज के लिए यह काफी है | अभी आप घर जाये और कल आप दुबारा वापिस आना और अपने दोस्त को अपने साथ लाना नहीं भूलना |
बच्चे अपने घर को जाते है और हमारे सम्प्रदाय के आचार्यो के बारे में सोचते है और बहुत उत्सुकता से इंतज़ार करते है की कब दूसरे दिन दादी उनको कहानी सुनाएगी |
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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