श्रीवैष्णव – बालपाठ – श्री पराशर भट्टर्

श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

बालपाठ

<<एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी)

पराशर और व्यास, वेदवल्ली और अत्तुलाय के साथ अण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते है |

दादी : सु:स्वागतम बच्चो ! आज हम दूसरे आचार्य जी के बारे में बात करेंगे जिनका नाम श्री पराशर भट्टर् जी था, जो एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) जी के शिष्य थे और उनका एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) और एम्पेरुमानार जी के प्रति बहुत स्नेह भक्ति रखते थे | जैसे मैंने आपको बताया की एम्पेरुमानार जी श्री पराशरजी और महर्षि व्यास जी की प्रति आभार व्यक्त करने के लिए कुरेशा स्वामीजी की दोनों पुत्रो का नाम श्री पराशर भट्टर और वेद व्यास भट्टर रखते है | यह उन तीन वचनों में से एक वचन था जो उन्होंने अपने गुरूजी श्री आळवन्दार् स्वामीजी से पूरा करने के लिए किया था | श्री पराशर और वेद व्यास भट्टर जी का जन्म श्रीरंगम के श्रीनाथ पेरिय पेरुमाल जी से प्रसाद रूप में कुरेशा जी और उनकी पत्नी अण्डाल जी से हुए थे |

कूरत्ताळ्वान् अपने पुत्र पराशर भट्टर और वेद व्यास के साथ
कूरत्ताळ्वान् अपने पुत्र पराशर भट्टर और वेद व्यास के साथ

पराशर : दादी, क्या मेरा और व्यास का नाम आचार्य जी के नाम पर रखा गया ?

दादी : हाँ, पराशर ! बच्चो का नाम आचार्य जी के नाम पर ही रखा जाता है या फिर भगवान के नाम पर ताकि बच्चो को बुलाते हुए हमें भगवानजी और आचार्यजी का दिव्य नाम लेने का अवसर प्राप्त हो | इसी कारण से हम अपने बच्चो का नाम भगवान, श्रीलक्ष्मीजी या आचार्यजी के नाम पर रखते है ताकि हम उनका पवित्र नाम लेकर बच्चो को पुकारे और हमें समय मिले की हम अपने आचार्य जी और भगवानजी के बारे में और दिव्य गुणों के बारे में विचार कर सके| अन्यथा इस कार्यरत संसार में किसके पास इतना समय नहीं होगा की समय निकाल कर भगवानजी के बारे में और उनके दिव्य नामो के बारे में सोच सके ? लेकिन वर्तमान में हालत बदले हुए है| जीव फैशन परस्त नामों को प्रयोग में लाते है जिसका कोई तर्क नहीं बनताजिससे हमें भगवान, श्रीमहालक्ष्मीजी, हमारे आचार्य जी का भी स्मरण नहीं होता |

श्रीरंगम आने के बाद एक बार श्री कूरत्ताळ्वान् भिक्षा मांगने [उंझा वृत्ति] हेतु घर से निकले परंतु बारिश की वजह से खालि हाथ लौटे।आण्डाळ और आळवांन् बिना कुछ पाये खाली पेट विश्राम कर रहे थे | विश्राम के समय मे उनकी पत्नी श्री आण्डाळ को मंदिर के अंतिम भोग की घंटी की गूंज सुनाई देती है। तब श्री आण्डाळ भगवान से कहती है – “यहाँ मेरे पती जो आपके बहुत सच्चे और शुध्द भक्त है जो बिना कुछ खाए ही भगवद-भागवद कैंकर्य कर रहे हैं दूसरी ओर आप स्वादिष्ट भोगों का आनंद ले रहे है यह कैसा अन्याय है स्वामि”। कुछ इस प्रकार से कहने के पश्चात चिंताग्रस्त पेरियपेरुमाळ अपना भोग उत्तमनम्बि के द्वारा उनके घर पहुँचाते है। भगवान का भोग उनके घर आते हुए देखकर कूरत्ताळ्वान् आश्चर्यचकित हो गए। उन्होने तुरंत अपनी पत्नी की ओर मुडकर पूछा – क्या तुमने भगवान से शिकायत किया की हमे अन्न की व्यवस्था करें ? यह पूछने के पश्चात, आण्डाळ अपनी गलती स्वीकार करती है और कूरत्ताळ्वान् इस विषय से नाराज/अस्तव्यस्त हो गये क्योंकि उनकी पत्नी ने भगवान को प्रसाद देने से निर्दिष्ट किया। घर आए हुए भगवान के प्रसाद का अनादर न हो इसीलिये कूरत्ताळ्वान् दो मुट्टी भर प्रसाद ग्रहण करते है और स्वयम थोडा खाकर शेष पत्नी को देते है। यही दो मुट्टी भर प्रसाद उन्हे दो सुंदर बालकों के जन्म का सहकारी कारण बना।

व्यास : दादी, एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी के आचार्य कैसे बने?

दादी : दोनों बच्चों  के जन्म के बाद, एम्पेरुमानार एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) जी को दोनों बच्चों  लाने के लिए भेजते है ताकि वह उन बच्चों  अपनी दृष्टि डाल सके | एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) जैसे ही दोनों बच्चों  को देखा उन्हें ज्ञात हो गया यह बच्चों  का जन्म संप्रदाय के लिए हुआ है | श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी ने बच्चों  के मुख पर महान तेज देखा और तत्काल बच्चों  की रक्षा के लिए द्वय महा मंत्र का जाप किया ताकि बच्चों  को किसी की बुरी नजर न लगे | एम्पेरुमानार जी ने बच्चों  को देखा और तत्कालिक निर्णय लिया की दोनों  को द्वयं मंत्र के द्वारा सम्प्रदाय में लाया जाये | एम्पेरुमानार जी के पूछने पर श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी ने बताया की उन्होंने बच्चों  की रक्षा के लिए पहले ही द्वयं मंत्र का उच्चारण किया | तब से  श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी को उन दोनों बच्चों  का आचार्य नियुक्त किये गए जब उन्होंने दोनों को द्वयं मंत्र उच्चारण करके उनको दीक्षित किया | दोनों बच्चे एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) और अपने पिताजी से सीखते हुए बढ़े हुए | जैसे बच्चों  का जन्म भगवान के आशीर्वाद से हुआ था, उसी तरह दोनों बच्चे पेरिय पेरुमल और पेरिय पिराट्टी के प्रति स्नेह भावना रखते थे | एम्पेरुमानार जी भी आलवान स्वामीजी से कहते थे की वह अपना बेटा पराशर भट्टर जी एम्पेरुमानार जी को पेरिया पेरुमल का बेटा समझ कर सौंप दे और आलवान स्वामीजी ने ऐसा ही किया | ऐसा कहा जाता है की भट्टर स्वामीजी जब वह बच्चे थे  श्री रंग नाच्चियार् खुद अपनी सन्निधि में उनका  पालन – पोषण करती थी | | इस तरह का प्रेम और संबंद्व था श्री भट्टर स्वामी का पेरिय पेरुमाल और पिरट्टि के बीच | जब पराशर भट्टर् युवा अवस्था में थे तब एक दिन पेरिय पेरुमाळ को मंगला शासन करने मंदिर पहुँचते हैं । मंगला शासन करके बाहर आने के बाद उन्हें देखकर एम्पेरुमानार् अनंताळ्वान् और अन्य श्री वैष्णव से कहते हैं जिस तरह उन्हें मान सम्मान देकर गौरव से पेश आ रहे हैं उसी तरह भट्टर् के साथ भी बर्ताव करे  | रामानुज स्वामीजी भट्टर स्वामी में अपने आप को देखते थे | रामानुज स्वामी जानते थे भट्टर स्वामी ही आगामी दर्शन प्रवर्तकार होंगे |भट्टर् बचपन से ही बहुत होशियार थे | उनकी बुद्धिमत्ता को दर्शाने वाली कई कहानियाँ हैं।

अत्तुलाय : दादी, हमें उसकी बुद्धि के बारे में कुछ कहानियाँ बताएं ?

दादी : एक बार भट्टर् गली में खेल रहे थे उसी समय सर्वज्ञ भट्टर् के नाम से जाने वाले एक विद्वान पाल्की में विराजमान होकर वहाँ से गुजर रहे थे। श्री रंगं में इस तरह एक मनुष्य पाल्की में विराजित होने का दृश्य देखकर भट्टर् आश्चर्य चकित हो गये, फिर सीधे उनके पास पहुँचकर उन्हें वाद – विवाद करने की चुनौती देते हैं । सर्वज्ञ भट्टर् उन्हें सिर्फ एक छोटे बालक की दॄष्टि से देखते हैं और उन्हें ललकारते हैं की वे उनके किसी भी प्रश्न का जवाब दे सकते हैं। भट्टर् एक मुट्टी भर रेत लेकर उनसे पूछते है – क्या आप बता सकते है कि मेरे इस मुट्टी मे कितने रेत के कनु है ? सर्वज्ञ भट्टर् प्रश्न सुनकर हैरान हो जाते हैं और उनकी बोलती बंद हो जाती हैं । वे कबूल् कर लेते हैं कि उन्हें उत्तर नहीं पता हैं| भट्टर् उनसे कहते हैं कि वे उत्तर दे सकते थे कि एक मुट्टी भर रेत उनकी हाथ में हैं । सर्वज्ञ भट्टर् उनकी प्रतिभा को देखकर आश्चार्य चकित हो जाते हैं और तुरंत पाल्की से उतरकर उन्हें अपने माता-पिता के पास ले जाकर गौरवान्वित करते हैं |

वेदवल्ली : यह एक अच्छा जवाब था।

दादी : यह घटना भट्टर् के गुरुकुल के समय की थी । उस दिन भट्टर् गुरुकुल नहीं गए और सड़क पे खेल रहें थे । उन्हें रास्ते पर खेलते हुए पाकर आळ्वान् आश्चर्य चकित होकर उनसे गुरुकुल न जाने का कारण पूछते हैं । उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि “प्रति दिन गुरुकुल में एक हि पाठ पढ़ाई जा रही हैं ” आमतौर से एक पाठ १५ दिन पढ़ाई जाती हैं । लेकिन भट्टर् पहली ही बार पाठ का ग्रहण कर चुके थे । आळ्वान् ने उनकी परिक्षा की और भट्टर अति सुलभ से पाशुर् पठित किये ।

व्यास : जैसे पिता वैसे पुत्र !

दादी ( मुस्कुराते हुए ) : सही ! भट्टर अपने पिता आलवान स्वामी जैसा ज्ञान और मेधा शक्ति रखते थे | श्री रंग राज: स्तवं में,भट्टर् अपने जीवन में घटित एक घटना बतलाते हैं । एक बार पेरिय कोविल में एक कुत्ते का प्रवेश होता हैं । अर्चक स्वामि मंदिर को शुद्ध करने के लिए एक छोटा संप्रोक्षण करने की ठान लेते हैं । यह सुनकर भट्टर् दौड़कर पेरिय पेरुमाळ के पास पहुँचते है और कहते हैं कि वे प्रतिदिन कोविल में प्रवेश करते हैं परंतु कोई भी संप्रोक्षण नहीं करते लेकिन जब एक कुत्ते का प्रवेश होता हैं तब क्यों संप्रोक्षण कर रहे हैं । इस प्रकार की थी उनकी विनम्रता – वे स्वयं महान पंडित होने के बावज़ूद अपने आप को कुत्ते से भी नीच मानते हैं । उसी श्री रंग राज:स्तवं में बतलाते हैं कि वे देवलोक में एक देवता जैसे पैदा होने से भी श्री रंग में एक कुत्ता का जन्म लेना पसंद करते हैं ।

वेदवल्ली: दादी, जब श्री रंग नाच्चियार् जी ने भट्टर जी का पालन- पोषण किया, क्या तब भट्टर जी पेरुमल और पिराट्टी जी से बात करते थे जैसे थिरुकाची नम्बि जी देव पेरुमल जी से करते थे ?

दादी : हाँ, वेदवल्ली तुम ठीक कह रही हो | भट्टर जी भी श्रीरंगम में पेरुमल और पिराट्टी जी से बात करते थे | क्या आप जानते हो वर्ष में एक बार वैकुण्ठ एकादशी से एक दिन पहले, पगल पथु उत्सव के दसवें दिन, नम्पेरुमाळ जी नाच्चियार अम्मा जी की वेश वूशा धारण करते है? नम्पेरुमाळ जी श्रीरंग नाच्चियार जी के अलंकार धारण करते है और बहुत सुंदरता से श्रीरंग नाच्चियार जी की तरह इस दिन बैठते है | एक दिन नम्पेरुमाळ जी भट्टर स्वामीजी को बुलाकर पूछते है की क्या वह श्रीरंग नाच्चियार जी जैसे दीखते है | भट्टर स्वामीजी जो माता लक्ष्मी जी की तरफ अपना पक्ष रखते, नम्पेरुमाळ जी की तरफ प्रीति से देख कर कहते की प्रभु जी सब अलंकार बहुत सुन्दर है लेकिन जो करुणा लक्ष्मी माता जी के नेत्रों में है वह आपके कमल नयनो में नहीं | इस प्रकार का वात्सल्य था भट्टर स्वामीजी का माँ श्रीरंग नाच्चियार जी की प्रति |

हालाँकि, भट्टर जी के सैकड़ों अनुयायी थे, जो नियमित रूप से उनके  कालक्षेप को सुनते थे और उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होते थे, फिर भी बहुत कम लोग थे जो भट्टर जी को नापसंद करते थे। यह महान लोगों के लिए बहुत आम है। यह  रामानुज स्वामीजी  के साथ भी हुआ। एक बार, भट्टर जी को नापसंद करने वाले कुछ लोगों ने उन्हें ईर्ष्या और घृणा से डांटना शुरू कर दिया। अगर कोई आप पर चिल्लाता है, तो आप क्या करेंगे?

व्यास :  मैं उस पर वापस चिल्लाऊँगा। मैं क्यों चुप रहूं?

दादी: यह वास्तव में हम में से अधिकांश ऐसे होते है , यहां तक ​​कि वयस्क भी ऐसा ही करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भट्टर जी ने क्या किया? उन्होंने अपने गहने और महंगे शॉल उस व्यक्ति को भेंट किए, जो उन पर चिल्लाया था। भट्टर जी ने यह कहकर उनका धन्यवाद किया कि “हर श्रीवैष्णव को दो काम करने चाहिए – एम्पेरुमान जी की महिमा गाओ और अपने स्वयं के दोषों के बारे में भी विलाप करो। मैं एम्पेरुमान जी की महिमा को गाने में इतनी गहराई से डूब गया कि मैं अपने दोषों के बारे में विलाप करना भूल गया। अब आपने अपना कर्तव्य पूरा करके मुझ पर बड़ा उपकार किया है, इसलिए मुझे केवल आपको पुरस्कृत करना चाहिए ”। ऐसी थी उनकी विशालता।

पराशर : दादी , मुझे स्मरण है की आप कह रही थी की रामानुज स्वामीजी ने ही भट्टर स्वामीजी को आदेश दिया था की नन्जीयर् (श्री वेदांती स्वामीजी) को सम्प्रदाय में लेकर आये | भट्टर स्वामीजी ने ऐसा कैसे किया होगा ?

दादी : मुझे बहुत प्रसन्नता हुई यह जानकार की पराशर तुम्हे यह सब स्मरण है | हाँ, जैसा रामानुज दिव्य आज्ञा में बताया गया है, भट्टर स्वामीजी तिरुनारायणपुरम जाते है और नन्जीयर् (श्री वेदांती स्वामीजी) को श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में लेकर आते है | हमने इस जगह के बारे में पहले से सुना हुआ है ? क्या किसी को स्मरण है कब ?

वेदवल्ली : मुझे याद है | तिरुनारयणपुरम मंदिर उन सब मंदिरो में से एक है जहाँ रामानुज स्वामीजी ने सुधार किया था | रामानुज स्वामीजी ने श्री मेलकोटे मंदिर में व्यवस्था लागू की |

दादी : बहुत अच्छे वेदवल्ली | रामानुज स्वामीजी ने तिरुनारायणपुरम मंदिर में शेल्वपिळ्ळै भगवान जी की उत्सव मूर्ति मुस्लिम अक्रान्ताओ से छुड़ाकर वापिस मंदिर में पुनः स्थापित की थी | भट्टर स्वामीजी जिस कक्ष में माधवाचार्य (नन्जीयर स्वामीजी का असली नाम ) प्रसाद वितरित कर रहे होते है, सलाह उचित मानकर उन्होंने अपना सामान्य वेश धारा में बदलकर माधवाचार्यर् के तदियाराधना (प्रसाद विनियोग करने वाला प्रदेश )होने वाले महा कक्ष के पास पहुँचते हैं । बिना कुछ पाये उसी के पास निरीक्षण कर रहे थे । माधवाचार्यर् ने इन्हे देखा और पास आकर इनकी इच्छा और निरीक्षण का कारण जानना चाहा । भट्टर् कहते हैं कि उन्हें उनसे वाद करना हैं । भट्टर् के बारे में माधवाचार्यर् पहले सुनचुके थे और वे पहचान लेते हैं कि यह केवल भट्टर् ही हो सकते हैं (क्यूंकि किसी और को उनसे टकरार करने कि हिम्मत नहीं होगी ) । माधवाचार्यर् उनसे वाद के लिए राज़ी हो जाते हैं । भट्टर पहले तिरनेडुंदांडकम् की सहायता लेकर एम्पेरुमान की परत्वता की स्थापना करते हैं तत्पश्चात शास्त्रार्ध समझाते हैं । माधवाचार्यर् हार मानकर भट्टर् के श्री पद कमलों को आश्रय मान लेते हैं और उन्हें अपने आचार्य के स्थान में स्वीकार करते हैं । भट्टर् उन्हें अरुळिचेयल सीखने में विशिष्ट उपदेश देते हैं और सम्प्रदाय के विशेष अर्थ समझाते हैं । अध्यायन उत्सव शुरू होने के पहले दिन उनसे विदा होकर श्री रंगम पहुँचते हैं । श्री रंगम में उन्हें शानदार से स्वागत किया गया । भट्टर् पेरिया पेरुमाळ को घटित संघटनो के बारे में सुनाते हैं । पेरिया पेरुमाळ खुश हो जाते हैं और उन्हें उनके सामने तिरनेडुंदांडकम् गाने की आदेश देते हैं और यह रिवाज़ आज भी श्री रंगम में चल रहा हैं – केवाल श्री रंगम में ही अध्यायन उत्सव तिरनेडुंदांडकम् पढ़ने के बाद ही शुरू होता हैं ।

भट्टर स्वामीजी का नम्पेरुमाळ जी और श्रीरंग नाच्चियार जी के दिव्य विग्रहो के प्रति बहुत अनुराग था | भट्टर स्वामीजी कुछ पाशुर् और उनके सृजनीय अर्थ पेरिय पेरुमाळ के सामने सुनाते हैं । पेरिय पेरुमाळ बहुत खुश हो जाते हैं और कहते हैं “तुम्हे इसी समय मोक्ष साम्राज्य प्रदान कर रहा हुँ ” । भट्टर् उनके वचन सुनकर बेहद खुश हो जाते हैं और कहते हैं कि अगर वे नंपेरुमाळ को परमपद में नहीं पाये तो परमपद में एक छेद बनाकर उधर से कूद कर वापस श्री रंगम आ पहुंचेंगे । एक बार कुरेश स्वामीजी ने भट्टर स्वामीजी से पूछा अगर परमपदनाथ के दो या चार हाथ हुए तो, भट्टर स्वामीजी जवाब देते है की अगर परमपदनाथ जी के दो हाथ होंगे तो वह पेरिया पेरुमल जैसे दिखेंगे और अगर उनके चार हाथ होंगे तो वह हमारे नम्पेरुमाळ जी जैसे दिखेंगे | भट्टर स्वामीजी कभी भी अन्य जीवों को देखकर भी उनमे नम्पेरुमाळ जी ही को देखेंगे | वह भगवान जी के सब दिव्य मंगल विग्रह को नम्पेरुमाळ ही बताते थे | । जब नम्पेरुमाळ जी उनको मोक्ष प्रधान करते है,भट्टर स्वामीजी अपनी माता जी का आशीर्वाद प्राप्त करके इस संसार को छोड़ कर परमपद में जाकर अपने आचार्यो जी के साथ मिलते है ताकि वहां एम्पेरुमान जी का नित्य कैंकर्यं कर सके | कहा जाता हैं कि अगर भट्टर् और कुछ साल जीते तो परमपद को श्री रंगम से सीढ़ी डाल देते तिरुवाय्मोळी की व्याख्यान लिखने के लिए नंजीयर् को आदेश देते हैं और उन्हें दर्शन प्रवर्तकर् के स्थान में नियुक्त करते हैं ।

अतुलहाय : दादी, श्री भट्टर स्वामीजी का जीवन सुनाने में बहुत रूचि पूर्ण था | जो भक्ति उनमे दिखती थी नम्पेरुमाळ जी के प्रति और उनका संबंद्व मन को छू लेता है | अण्डाल अम्मा जी भी कितनी भाग्यशाली होंगी ऐसा महान पति पाकर और ऐसे महान बच्चे पाकर |

दादी : तुम बहुत ठीक कह रही हो अतुलहाय | अंडाल बहुत भाग्यवान समझेगी अपने आप को | कल में आपको नन्जीयर् (श्री वेदांती स्वामीजी) के बारे में बताउंगी जो की आगामी आचार्य थे | अब आप फल लो और घर जाओ |

बच्चे श्री भट्टर स्वामीजी और उनके दिव्य जीवन के बारे में सोचते हुए अपने घरों को चले जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

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