श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
<<श्री रामानुजाचार्य स्वामीजी – भाग 2
पराशर, व्यास, वेदवल्ली और अत्तुलाय के साथ अंडाल दादी माँ के घर में प्रवेश करते है |
दादी : सु:स्वागतम बच्चो | अपने हाथ और पॉंव दो लो | में कुछ प्रसाद लेकर आती हूँ | क्या आप जानते हो कल कौन सा दिन है ? कल आळवन्दार् स्वामीजी का तिरुनक्षत्रम, उत्तराषाढ नक्षत्र, का दिन है | यहाँ पर कौन आळवन्दार् स्वामीजी का स्मरण करता है?
अतुलहाय : मुझे याद है की आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) ने देव पेरुमल जी से प्रार्थना करके रामानुज स्वामीजी को श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में लेकर आये थे |
व्यास : हाँ | उनके परमपदम जाने के बाद उनके दिव्या शरीर के तीन उंगलिया मुड़ी हुई थी जो यह सूचित करती थी की उनकी अंतिम तीन मनोरथ अधूरे रह गए थे और रामानुज स्वामीजी ने प्रतिज्ञा लिए थे उनको पूर्ण करेंगे | जैसे ही रामानुज स्वामीजी ने प्रतिज्ञा लिए उसी समय तीनो मुड़ी हुई उंगलियां सीधी हो गयी |
पराशर : दादी हमें स्मरण है जब आपने कहा था की रामानुज स्वामीजी और आळवन्दार् स्वामीजी का संबंध मन और आत्मा का है और जो शारीरक इन्द्रियों से परे है |
दादी : वास्तव में, कल आळवन्दार् स्वामीजी का तिरुनक्षत्र है | यह लीजिये प्रसाद | कल मंदिर जाना भूल मत जाना और महान आचार्य जी को अपना सम्मान देना जिन्होंने रामानुज स्वामीजी को सम्प्रदाय में लेकर आये | आज आगे चलते है और चलो अपने दूसरे आचार्य एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) के बारे में जानते है | गोविन्द पेरुमाळ कमल नयन भट्टर् और श्री देवी अम्माळ को मधुरमंगलम में पैदा हुए । ये गोविन्द भट्टर, गोविन्द दास और रामानुज पदछायर के नामों से भी जाने जाते हैं । कालान्तर में ये एम्बार् के नाम से प्रसिध्द हुए । ये एम्पेरुमानार के चचेरे भाई थे जिन्होंने जब यादव प्रकाश एम्पेरुमानार की हत्या करने की कोशिश की तब ये साधक बनकर उन्हें मरने से बचाया ।
वेदवल्ली : दादी क्या मारा? मैंने सोचा था की रामानुज स्वामीजी का जीवन उस समय खतरे में था जब कूरत्ताळ्वान् (श्री कूरेश स्वामीजी) स्वामीजी और पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास) ने उनके प्राण बचाये थे | दादी कितनी बार उनके जीवन खतरे में था ?
दादी : बहुत बार | में आपको सब बताउंगी जैसी ही समय आएगा | उनका जीवन पहली बार तब खतरे में आया जब उनके गुरु यादव प्रकाश जी ने उनको मारना चाहा | रामानुज स्वामीजी और यादव प्रकाश जी में मत भेद था जब भी वेदो के श्लोको का अर्थ को बताना होता | श्रीयादवप्रकाश शास्त्रों में वर्णित श्लोकों का गलत अर्थ / तात्पर्य बतलाते । रामानुज स्वामीजी वेदो के श्लोको का गलत अर्थ / तात्पर्य सुनते बहुत बुरा अनुभव करते और तब श्री रामानुज स्वामीजी अन्य उदाहरण देकर श्लोकों का सही अर्थ बतलाते हुये श्रीयादवप्रकाश को सही तात्पर्य समझाने की कोशिश करते थे जैसे हमारे श्री विशिष्टाद्वैत संप्रदाय में अर्थ दिए हुए है | यादव प्रकाश जो की अद्वैत वादी थे कभी भी रामानुज स्वामीजी के द्वारा दिए गए अर्थो से प्रसन्न नहीं थे | वह जानते थे की जो अर्थ अनुवाद रामानुज स्वामीजी देते है वह ज़्यादा सार्थक है और इसीलिए प्रतिस्पर्धात्मक अनुभव करने लगे | यादव प्रकाश जी सोचते थे की रामानुज स्वामीजी उनको आचार्य की पदवी से मुक्त कर देंगे जब की रामानुज स्वामीजी का ऐसा कोई उद्देश नहीं था | इसी कारण से यादव प्रकाश जी अपने मन में रामानुज स्वामीजी से द्वेष की भावना रखते थे | यादवप्रकाश भगवत रामानुज स्वामीजी से छुटकारा पाने अपने अन्य शिष्यों के साथ विचार विमर्श कर , रामानुज स्वामीजी को काशी यात्रा पर ले जाकर वही समाप्त कर देने की योजना बना कर, काशी यात्रा के लिए जाते है। यादवप्रकाश की इस योजना का , भगवत रामानुज स्वामीजी के मौसेरे भाई गोविंदाचार्य (एम्बार) को पता चल जाता है । गोविंदाचार्य श्री रामानुज स्वामीजी को यादवप्रकाश की इस योजना से अवगत कराते हुए कांचीपुरम भेज देते हैं और इस तरह से गोविंदाचार्य (एम्बार) रामानुज स्वामीजी के प्राण बचा लेते है |
व्यास : दादी, क्या एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी) यादव प्रकाश जी के शिष्य थे ?
दादी : हाँ व्यास ! रामानुज स्वामीजी और गोविन्द स्वामीजी दोनों यादव प्रकाश जी से वेद अध्यन सीखने जाते थे | यद्यपि रामानुज स्वामीजी को अपने आप को बचाने के लिए दक्षिण भारत की तरफ यात्रा करनी थी, गोविन्द स्वामीजी यात्रा जारी रखते हैं और कालहस्ती पहुँचकर शिव भक्त बन जाते हैं जिससे उनको उल्लंगै कोंडा नयनार के नाम से जाने जाना लगे । उन्हें सही मार्ग दर्शन करने के लिए एम्पेरुमानार पेरिय तिरुमलै नम्बि को उनके पास भेज देते हैं ताकि गोविन्द स्वामीजी को सम्प्रदाय में वापिस ला सके । पेरिया नम्बि कालहस्ती जाते है और नम्माळ्वार जी के पासुर और आलवन्दार स्वामीजी के स्तोत्र रत्नम के श्लोको द्वारा गोविन्द पेरुमाळ को परिवर्तिन कर सके | गोविन्द पेरुमाळ जी को अपनी गलती की अनुभूति हुई और फिर वह संप्रदाय में वापिस आ जाते है | इसीलिए बच्चो आलवन्दार स्वामीजी परमपदम जाने के बाद भी इतने प्रभावशाली थे की केवल रामानुज स्वामीजी को ही सम्प्रदाय में नहीं लेकर आये बल्कि उनके मुसेरे भाई गोविन्द पेरुमाल जी को भी सम्प्रदाय में लेकर आये | जैसे पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी गोविन्द पेरुमाल जी को सम्प्रदाय में वापिस लेकर आते है इसीलिए वह उनके आचार्य भी थे और उन्होंने गोविन्द पेरुमाल जी का पञ्च संस्कार भी किया था | जैसे ही पेरिय थिरुमलई नम्बि गोविन्द पेरुमाल जी के साथ तिरुपति से वापिस आते है और गोविन्द पेरुमाल जी अपने आचार्य जी के कैंकर्य में लग जाते है | जहाँ एक विषय महत्वपूर्ण है जो आप सब ने देखा होगा | आपने देखा होगा की रामानुज स्वामीजी और पेरिय तिरुमलै नम्बि स्वामीजी ही गोविन्द पेरुमाल जी के पास उनके परिवर्तन के लिए जाते है न की गोविन्द पेरुमाल जी अपने सुधार के लिए रामानुज स्वामीजी और पेरिय नम्बि स्वामीजी के पास जाते है | ऐसे आचार्य जो अपने शिष्यों के पास इसीलिए पहुँचते है की उनका बेहतर सुधार कर सके और उनके भलाई के लिए ही चिंतित रहते है उनको कृपा मातृ प्रसनाचार्य कहा जाता है | वह स्वयं अपने शिष्यों के पास शुद्ध भाव से पहुँच कर उन पर निर्हेतुक कृपा करते है जैसे एम्पेरुमान करते है | रामानुज स्वामीजी और पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी दोनों गोविन्द पेरुमाल जी के लिए कृपामात्र प्रसनाचार्य थे |
पराशर : दादी हमें गोविन्द पेरुमाल जी के बारे में और बताइये | उन्होंने कौन कैंकर्यं किया था ?
दादी : ऐसे बहुत सी घटना है जो गोविन्द पेरुमाल जी के ऊपर पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी का आचार्य अभिमान दर्शाती है | एक बार गोविन्द पेरुमाल जी पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी के लिए बिस्तर बना रहे थे, तो उन्होंने अपने आचार्यं जी के लेटने से पहले बिस्तर का निरक्षण किया | जब नम्बि स्वामीजी ने उनसे पूछा अपने ऐसा क्यों किया तो गोविन्द पेरुमाल स्वामीजी उत्तर देते है की वह जानते है की इससे उनको नरक भोगना पड़ेगा, उनको नरक भोगना बुरा नहीं होगा जब तक आचार्य जी का बिस्तर सुरक्षित है और लेटने के लिए आरामदायक है | इससे उनके आचार्य अभिमान का गुण प्रकाशित होता है जहाँ पर गोविन्द पेरुमाल जी स्वयं के बारे में न सोचकर अपने आचार्य की तिरुमेनि (शारीर) की रक्षा करने में वे चिंतामग्न हैं । यह समय तब आया जब रामानुज स्वामीजी तिरुपति आते है ताकि वह पेरिय तिरुमलै नम्बि स्वामीजी से श्रीरामायण का मूलतत्त्व सीख सके | रामानुज स्वामीजी जब एक वर्ष नम्बि स्वामीजी से सीखने के बाद वापिस जाते है, नम्बि स्वामीजी रामानुज स्वामीजी को कुछ भेंट देने चाहते थे | रामानुज स्वामीजी गोविन्द पेरुमाल स्वामीजी को मांग लेते है और नम्बि स्वामीजी गोविन्द पेरुमाल जी को रामानुज स्वामीजी को कैंकर्यं करने के लिए उनको सौंपने को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करते है | यह सुनकर गोविन्द पेरुमाल जी दुःखी होते है के उनको पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी को छोड़कर जाना पड़ेगा |
व्यास : दादी, नम्बि स्वामीजी ने गोविन्द पेरुमाल जी को क्यों दे दिया ? गोविन्द पेरुमाल जी को क्यों जाना पड़ा जब के वह आचार्यं कैंकर्यं करने में खुश थे ?
दादी : व्यास, गोविन्द पेरुमाल संप्रदाय में एक बड़ी भूमिका क्रियान्वित करते है जिससे वह रामानुज स्वामीजी के लिए विभिन्न कैंकर्यं कर सके । बचपन से ही, गोविन्द पेरुमाल जी को रामानुज स्वामीजी के प्रति बहुत स्नेह और प्रेम भावना रखते थे | रामानुज स्वामीजी के परमपदम पहुँचने के बाद, उन्होंने रामानुज स्वामीजी के दूसरे शिष्य और पराशर भट्टर जी का भी मार्गदर्शन किया | इतनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना जो उनका इंतज़ार कर रही थी जिससे उनको अपने आचार्य पेरिय थिरुमलई नम्बि जी को छोड़ना पड़ा और रामानुज स्वामीजी को अपना गुरु और मार्गदर्शक मानना पड़ा | बाद में गोविन्द पेरुमाल जी ने रामानुज स्वामीजी को अपना सब कुछ माना और सुंदर पासुर रचा जिस में रामानुज स्वामीजी की दिव्या शरीर की सुंदरता का वर्णन किया | इसको एम्पेरुमानार वाड़ीवालागु पासुर सुनाते है | जैसा मैंने आपको पिछली बार बताया था , जब संप्रदाय पर बात आती है , बहुत अच्छे कारण के लिए आपको त्याग करना पड़ेगा और ऐसा ही गोविन्द पेरुमाल स्वामीजी ने किया |
अतुलाहय : क्या गोविन्द पेरुमाल स्वामीजी ने विवाह किया था ? क्या उनके बच्चे भी थे ?
दादी : गोविन्द पेरुमाल जी तो भगवद विषयम में लगन थी की उनको हर जगह और हर वस्तु में एम्पेरुमान दिखते थे | विवाह होने के बाद भी जब हम गोविन्द पेरुमाल जी का भगवद विषय की तरफ उठा हुआ जीवन देखते है, एम्पेरुमानार स्वामीजी स्वयं उन्हें सन्याश्रम प्रादान करते हैं और एम्बार् का दास्यनाम देकर उनके साथ सदैव रहने के लिए कहते हैं । अपने जीवन के अंतिम दिनों में एम्बार् स्वामीजी श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी को आदेश देते है की श्रीवैष्णव संप्रदाय का प्रचार और प्रसार कर सके | उन्होंने श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी को आदेश दिया की सदैव एम्पेरुमानार जी के चरण कमलो में प्रीती रखे और सदैव एम्पेरुमानार थिरुवडिगले शरणम् मंत्र का जाप करे | अपने आचार्यं रामानुज स्वामीजी के चरण कमलो में ध्यानमग्न रहते हुए और अपने आचार्य जी से ली हुई प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए, एम्बार परमपदम पहुँच जाते है ताकि वह अपने आचार्य जी के प्रति कैंकर्यं कर सके | श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी ने भी आचार्य आज्ञा का आदेश मानते हुए श्रीवैष्णव संप्रदाय परम्परा को और आगे प्रचार और प्रसार करने के लिए कैंकर्य किये |
वेदवल्ली : दादी, हमें श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी के बारे में बताइये |
दादी : में आपको श्री पराशर भट्टर् स्वामीजी के बारे में बताउंगी जब हम अगली बार मिलेंगे | अभी आप घर जाये, बाहर अँधेरा हो रहा है | और कल मंदिर जाना मत भूल जाना क्यूंकि कल आलवन्दार तिरुनक्षत्र है |
बच्चे अपने घर को आळवन्दार् स्वामीजी, पेरिय थिरुमलई नम्बि स्वामीजी, रामानुज स्वामीजी और एम्बार स्वामीजी के बारे में सोचते हुए प्रस्थान करते है |
अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन
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