Monthly Archives: May 2021

श्रीवैष्णव – बालपाठ – अपचार (अपराध)

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श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः

बालपाठ

पिछ्ला

पराशर, व्यास, ववेदवल्ली और अतुलाय ने अण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते है |

दादी: स्वागत है बच्चों। अपने हाथ-पैर धोएं। मैं तुम्हें पेरुमाल को चढ़ाए हुए फल दूँगी । क्या आप जानते हैं इस महीने क्या विशेष है ?

पाराशर: दादी मैं बताता हूँ । इस मास में यह माणवल मामुनिगल स्वामीजी का अवतार दिवस आता है । तमिल मास एपासी और स्टार "थिरुमुलम" हो तब मामुनिगल स्वामीजी तिरुनक्षत्र होता है |

वेेदावल्ली : हाँ। इसी मास में मुदल आळ्वार, सेनाई मुदलियार और पिल्लै लोकाचार्य का भी अवतार दिवस होता है। क्या मैंने सही कहा दादीजी ?

दादी : अच्छा कहा। हमने अब तक आलवारों, आचार्यों, अनुष्ठानों/सर्वोत्तम प्रथाओं, कैंकर्य/सेवा के बारे में देखा है। आगे हम अपचारम के बारे में जानेंगे।

व्यास: दादी जी, अपचारम क्या है?

दादी: अपचारम एक अपराध है जो एम्पेरुमान या उनके भक्तों के प्रति किया गया । हमें हमेशा एम्पेरुमान और उनके भक्तों को प्रसन्न करने के लिए उत्सुक रहना चाहिए। कोई भी कार्य जो एम्पेरुमान और भागवत को अप्रसन्न करता है वह अपचारम है। हम देख सकते हैं कि कौन से अपाचार (अपराध) हैं जिनसे हमें बचना चाहिए।

अतुलाय : दादी जी , क्या आप कृपया विस्तार से बता सकते हैं?

दादी : हाँ। श्रीवैष्णवों के लिए, शास्त्र ही आधार/नींव/मार्गदर्शक है। हमारे पूर्वाचार्य शास्त्र का बहुत सम्मान करते थे और उनके अनुष्ठानों/सर्वोत्तम प्रथाओं का ठीक से पालन करते थे। वे एम्पेरुमान और उनके भक्तों के प्रति कोई अपराध करने से बहुत डरते थे। अत: हमें भी अपाचरामों से बचने के लिए हर समय सतर्क रहना चाहिए। अब हम एक-एक करके (अपचार के प्रकार) विस्तार से देख सकते हैं। सबसे पहले हम भगवत अपचार के बारे में देखेंगे।

व्यास: एम्पेरुमान के प्रति अपचार करना भगवत अपचार है, क्या में सही कह रहा हु दादीजी ?

दादी: हाँ, तुम सही कह रहे हो। निम्नलिखित भगवत अपचार के रूप में सूचीबद्ध हैं।

● एम्पेरुमान को ब्रह्मा, शिव, वायु, वरुण, इंद्र सहित अन्य देवताओं के समान मानना एक अपराध है।

● श्रीवैष्णव बनने के बाद, अन्य देवताओं की पूजा करना भी एक भगवत अपचार है।

सभी एम्पेरुमान की रचनाएं हैं

● नित्य कर्म अनुष्ठान नहीं करना, भगवत अपचार के अंतर्गत आता है। नित्य कर्मानुष्ठान हमारे लिए
एम्पेरुमान का आदेश हैं, इसलिए हमें उनके वचनों का पालन करना चाहिए। यदि हम उनके आदेश के अनुसार कार्य नहीं करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम अपराध कर रहे हैं। आशा है कि आप सभी को याद होगा कि हम इस बारे में पहले चर्चा कर चुके हैं।

पराशर : हाँ दादीजी, व्यास और मैं बिना किसी रुकावट के प्रतिदिन संध्यावंदन करते हैं।

दादी: यह सुनकर खुशी हुई कि आप नित्य कर्मअनुष्ठान का पालन कर रहे हैं।

● अगली महत्वपूर्ण बात जिससे हमें बचना चाहिए, वह है राम, कृष्ण जैसे अवतार को सामान्य या सुपर पावर इंसानों के रूप में मानना। एम्पेरुमान ने अपने भक्तों के प्रति अपने प्रेम और दया के कारण हम सबकी सहायता के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया।

● अपने आपको स्वतंत्र मानना और इस भौतिकवादी दुनिया पर अपना अधिकार मानना । हमें यह
समझना चाहिए कि सभी एम्पेरुमान के अधीन हैं और उसके अनुसार ही कार्य करें।

● एम्पेरुमान की चीजें को चुराना। इसमें एम्पेरुमान की संपत्ति जैसे उनके वस्त्र (कपड़े), थिरु आभरणम (आभूषण) और अचल संपत्ति जैसे उनकी जमीन आदि की चोरी शामिल है।
अतुलाय: दादी को सुनना बहुत दिलचस्प है, क्या आप हमें भागवत अपचार के बारे में बता सकते हैं?

दादी: अवश्य अतुलाय। एम्पेरुमान के भक्तो के प्रति अपचार करना भागवत अपचार के अंतर्गत आता है। भगवत अपाचार और भागवत अपाचार में, भागवत अपाचार सबसे क्रूर है। एम्पेरुमान अपने भक्तों के कष्टों को सहन नहीं कर सकते। इसलिए हमें भागवत अपाचारों से बचने के लिए सतर्क रहना चाहिए। निम्नलिखित भागवत अपचार के रूप में सूचीबद्ध हैं |

● अन्य श्रीवैष्णवों को अपने समान समझना। हमें हमेशा अपने आप को अन्य श्रीवैष्णवों से कम समझना चाहिए।

● हमें किसी को भी शारीरिक और मानसिक रूप से आहत नहीं करना चाहिए।

● जन्म, ज्ञान, कर्म, धन, रहने की जगह, रंग आदि के आधार पर श्रीवैष्णव का अनादर करने से बचना चाहिए।

हमारे पूर्वाचार्यों ने अन्य श्रीवैष्णवों के साथ व्यवहार करते हुए सख्त मानकों को बनाए रखा है। वे अन्य श्रीवैष्णवों को नाराज/परेशान न करने के लिए हर समय बहुत सतर्क रहते थे। वे सभी के साथ सम्मान से पेश आते थे।

वेदवल्ली : दादीजी, हम निश्चित रूप से ऐसे अपाचारों से बचेंगे और एम्पेरुमन को प्रसन्न रखेंगे ।

शेष तीन बच्चे (एक साथ बोलते हुए ): जी दादीजी ।

दादी: बहुत अच्छे प्यारे बच्चों। अब तक मैंने आपको हमारे संप्रदाय के बारे में बहुत सी बातें सिखाई हैं। अगली बार जब आप यहां आएंगे, तो आपको और सिखाएंगे। अब बाहर बहुत अंधेरा हो रहा है। आप सभी के जाने का समय हो गया है।

बच्चे : हमने आपसे बहुत कुछ सीखा है दादीजी । हम एम्पेरुमान और आचार्यों की कृपा से इन शिक्षाओं को यथासंभव अभ्यास में लाने का प्रयास करेंगे।

दादी: सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।

बच्चे अपनी दादी के साथ हुई बातचीत के बारे में सोचकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए निकल जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2018/11/beginners-guide-apacharams/

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श्रीवैष्णव – बालपाठ – कैंकर्य (सेवा)

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श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः

बालपाठ

पिछ्ला

पराशर, व्यास, ववेदवल्ली और अतुलाय ने अण्डाल दादी के घर में प्रवेश करते है |

दादी: स्वागत है बच्चों। अपने हाथ-पैर धोएं। मैं तुम्हें पेरुमाल को चढ़ाए हुए फल दूँगी । क्या आपने आलवन्दार स्वामीजी का तिरुनक्षत्र मनाया था?

पराशर : जी, हमने उत्सव बहुत आनंद के साथ मनाया था । आलवन्दार स्वामीजी की सन्निधि में हमें अच्छे दर्शन हुए। वहाँ, उन्होंने तिरुनक्षत्रम को भव्य तरीके से मनाया। हमारे पिता जी ने हमें आलवन्दार स्वामीजी वालि तिरुनामम सिखाया था और हमने अपने घर में भी इसका पाठ किया।

अण्डाल दादी: सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।

वेदवल्ली : पिछली बार आपने हमसे कहा था कि आप कैंकर्य का महत्व बताएंगे | दादीजी क्या आपको वह स्मरण है?

अण्डाल दादी: हाँ, मुझे स्मरण है। मुझे बहुत खुशी है कि आपको भी स्मरण है और आपने मुझसे यह पूछा। एम्पेरुमान एवं उनके भक्तों के प्रति जो सेवा की जाये उसे कैंकर्य कहते है | हमारे कैंकर्य भगवान जी की प्रसन्नता के लिए होना चाहिए और जिससे उनका हृदय प्रसन्न रहे |

व्यास: अगर एम्पेरुमान प्रसन्न हो जायेंगे, तो हम उनके लिए कैंकर्य करने के लिए बहुत उत्सुक हैं। दादीजी हम कैंकर्य की कैसे कर सकते हैं?

आण्डाल दादी : हम अपने मन से (मानसिक कैंकर्य), अपने शब्दों से(वाचिक) और हमारे शरीर से (शारीरिक कैंकर्य) कैंकर्य कर सकते हैं। आण्डाल नच्चियार ने भी यही कहा था  उसके तिरुप्पवई ५वें पाशुराम में कि हम उनकी महिमा गा सकते हैं, उनके बारे में सोच सकते हैं और उनको फूल
अर्पण कर सकते हैं। इस तरह हम उनके मन को प्रसन्न कर सकते हैं। एम्पेरुमान के दिव्य गुणों के बारे में सोचना मानसिक कैंकर्य के अंतर्गत आता है। उनकी दिव्य महिमा की स्तुति/गायन करना और उनके भक्तों की महानता के बारे में बोलना, आल्वार के भजनों और पूर्वाचार्यों के स्तोत्रों का पाठ करना एम्पेरुमान को बहुत प्रसन्न करता है। यह कैंकर्य वाचिक कैंकर्य के अंतर्गत आते हैं। एम्पेरुमान के मंदिर परिसर/सन्निधि की सफाई करना,  उनके परिसर/संनिधि को कोलम(रंगोली ) (सुंदर आकृतियाँ) बनाकर सजाना, माला बनाकर, उनके तिरुवाराधनम के लिए चंदन का लेप पीसना आदि शारीरिक कैंकर्य के अंतर्गत आते हैं। सबसे पहले, हमें अपने घरों में एम्पेरुमान
को संभावित कैंकर्य करना चाहिए । एम्पेरुमान आप जैसे बच्चों द्वारा किए गए कैंकर्य को सहर्ष स्वीकार करते हैं।

पराशर : दादी जी आपने यह बहुत अच्छी तरह समझाया है । हम अपने घर पर अपने पिता द्वारा किए गए  तिरुवाराधनम में खुशी-खुशी भाग लेंगे।

दादी: सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।

अतुलहाय : वेदवल्ली और मैं कोलम एवं माला बनाने आदि में भाग लेंगे।

अण्डाल दादी : अतुलहाय सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एम्पेरुमान के भक्तों के लिए कैंकर्य करना, एम्पेरुमान के कैंकर्य करने से अधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, लक्ष्मण ने श्री राम के लिए सभी कैंकर्य किए, लेकिन शत्रुघ्न ने श्री राम के प्रिय भाई और भक्त भरत के लिए कैंकर्य किया। इसके अलावा, नम्माळ्वार स्वामी अपने प्रिय कृष्ण को अपना भोजन, पानी और सुपारी / मेवा मानते थे, लेकिन मधुरकवि आळ्वार नम्माळ्वार को अपना एकमात्र भगवान मानते थे। यह एम्पेरुमान के भक्तों की महानता पर जोर देता है। इसलिए, हमें हमेशा एम्पेरुमान के भक्तों के भक्त बने रहना चाहिए।

अतुलहाय : जैसा कि आपने कहा, हम निश्चित रूप से एम्पेरुमान के भक्तों के कैंकर्य करने को प्राथमिकता देंगे। दादीजी लेकिन हम भक्तों की सेवा कैसे कर सकते हैं ?

अण्डाल दादी : जब भक्त हमारे घरों में आते हैं, तो हमें उन्हें प्रणाम करना चाहिए और उन्हें सहज महसूस कराना चाहिए। हमें आवश्यकतानुसार उनकी सहायता करनी चाहिए। हमें उनसे एम्पेरुमान, आलवारों और आचार्यों के बारे में अद्भुत चरित्रों के बारे में भी जानना चाहिए और उनसे जितना हो सके सीखने का प्रयास करना चाहिए। हमें उनसे विनम्रतापूर्वक पूछना चाहिए कि क्या उन्हें अपने कैंकर्यों में किसी सहायता की आवश्यकता है और उनका समर्थन करना चाहिए। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे कोई भी भक्तों के लिए कैंकर्य में संलग्न हो सकता है।

अतुलहाय : अवश्य दादीजी । हमें अब इसके बारे में एक विचार मिलता है। हम निश्चित रूप से ऐसे अवसरों की तलाश करेंगे।

(शेष तीन बच्चे (एक साथ बोलते हुए ): जी दादीजी) ।

दादी: प्यारे बच्चों सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।

वेदवल्ली : दादीजी, आपकी बातें सुनना बहुत दिलचस्प है। कृपया हमें और बताएं।
आण्डाल दादी: मुझे इसे और समझाने में बहुत खुशी होगी लेकिन अब बाहर बहुत अंधेरा हो रहा है। अगली बार हम किसी अन्य विषय पर चर्चा करेंगे। अब आप सभी अपने-अपने घरों को जाएं।
बच्चे अपनी दादी के साथ हुई बातचीत के बारे में सोचकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए निकल जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

आधार – http://pillai.koyil.org/index.php/2018/10/beginners-guide-kainkaryam/

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श्रीवैष्णव – बालपाठ – शुरुआत के मार्गदर्शक – अनुष्टानम (सर्वोत्तम अभ्यास)

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श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः

बालपाठ

पिछ्ला

पराशर, व्यास, ववेदवल्ली और अतुलाय ने अण्डाल दादी के घर में प्रवेश किया।

दादी : स्वागत बच्चो | आप सब अपने हाथ एवं पॉंव धोकर आयो में तुम्हे भगवान का प्रसाद दूंगी | क्या आप जानते हो की इस मास में क्या विशेष है ?

वेदवल्ली : दादी में बताती हूँ | मुझे याद है अपने पिछली बार हमें क्या बताया था | इस में “सुडीक कोडत सुढरकोड़ी”; अण्डाल नाच्चियार अवतार मास | उनका अवतार दिन तमिल मास आदि में एवं पुरम नक्षत्र हो तब होता है |

पराशर : हाँ | इसी मास में नाथमुनिगल स्वामीजी के पर पौत्र आळवन्दार स्वामीजी का भी अवतार दिवस होता है | तमिल मास आदि एवं नक्षत्र उत्तरदम में आलवन्दार स्वामी की तिरुनक्षत्र होता है | क्या मैंने ठीक कहा दादी जी ?

दादी : सही कहा | हमने अब तक आळ्वार एवं आचार्यो के बारे में में देखा एवं सुना | अगली बार हम सर्वोत्तम प्रथाएं जो हम प्रतिदिन आचरण करते है वह सीखेंगे |

अतुलहाय : दादी, सर्वोत्तम प्रथाएं कौन सी है ?

दादी : हमारी भलाई के लिए शास्त्रों द्वारा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं, उन नियमों का पालन करना अनुष्ठानम (सर्वोत्तम अभ्यास) कहा जाता है। उदाहरण के लिए: हमें सुबह जल्दी उठकर स्नान करना होता है। यह हमारे लिए निर्धारित एक नियम है। इसे हमारी अण्डाल नच्चियार ने अपनी तिरुप्पावै में “नाटकले नीराडि” के रूप में भी बताया था।

व्यास : हाँ दादी, मुझे याद है यह तिरुप्पावै का दूसरा पाशुरम है न |

दादी : बिल्कुल सही | बिल्कुल सही! प्रात:काल जब हम एम्पेरुमान का नाम सोचते और जपते हैं, तो हमारा मन शुद्ध हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर सुबह स्नान करने के बाद हमें थिरुमन कप्पू पहनना चाहिए और जिन लोगों का उपनयनम हुआ है, उन्हें संध्यावंदनम और अन्य दैनिक कर्मानुष्ठान करना चाहिए।

पराशर एवं व्यास : दादी जी , हमें नित्य कर्मानुष्ठान बिना रुके करने चाहिए |

दादी : सुनकर प्रसन्नता हुई |

वेदवल्ली : हम खुशी से थिरुमान काप्पू धारण कर रहे हैं। कृपया थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) पहनने के पीछे का महत्व और कारण बताएं। हम दादी सुनने के लिए बहुत उत्सुक हैं।

दादी : ठीक है, सुनो। थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) – काप्पू का अर्थ है रक्षा (संरक्षण)। एम्पेरुमान और लक्समी पिराट्टि हमारे साथ रहते हैं और हमेशा हमारी रक्षा करते हैं। थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) धारण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हम उनके भक्त हैं। इसलिए हमें खुशी से और बहुत गर्व के साथ पहनना चाहिए।

वेदवल्ली : हम थिरुमान काप्पू (श्रीवैष्णव तिलक) के महत्व को समझ चुके हैं। सुनकर बहुत अच्छा लगा |

हर कोई (सहगान में) : जी दादी |

दादी : बहुत अच्छे बच्चों | इसी तरह हमारे कल्याण के लिए शास्त्रों द्वारा कई अन्य नियम निर्धारित किए गए हैं। मैं उनमें से कुछ को अभी साझा करूंगी, ध्यान से सुनें। हमें खाना खाने से पहले और बाद में हाथ-पैर धोने चाहिए। क्योंकि जब हम स्वच्छ रहेंगे तभी हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें केवल वही खाना चाहिए जो पेरुमाल को भोग लगाया जाता है। हम जो भोजन करते हैं वह हमारे चरित्र को निर्धारित करता है। पेरुमाल के प्रसाद के सेवन से सत्व गुण (अच्छे गुण) भगवत कृपा से विकसित होंगे।

पराशर : हमारे घरों में, हमारी माता जी खाना तैयार करती है और हमारे पिताजी भगवान जी को भोग लगाते है |भगवान जी का चरणामृत लेकर ही हम प्रसाद पा सकते है |

दादी : अच्छी आदत | इसको धारण करके रखना बच्चो | मुस्कुराते चेहरों के साथ चारों ने कहा ठीक है |

दादी : इसके अलावा हमें आलवारों के कुछ पाशुरामों का पाठ करने के बाद ही प्रसाद लेना चाहिए। पेरुमाल को दिया जाने वाला भोजन हमारे पेट के लिए भोजन है। क्या आप जानते हैं कि हमारी जिह्वा का भोजन क्या है?

अतुलहाय : कृपा करके जिह्वा के भोजन के बारे में बताएं | दादी जी वह क्या है ?

दादी : हाँ प्रिय बच्चो । एम्पेरुमान के दिव्य नामों का जप हमारी जिह्वा का भोजन है। मधुरकवि आळ्वार नम्मलवार को अपना स्वामी मानते थे। मधुरकवि आळ्वार ने अपने कण्णिनुं छीरुथाम्बु में कहा है कि कुरुगुर नंबी (नम्मालवार के नामों में से एक) कहना उनके लिए जिह्वा में शहद चखने जैसा है।

(नम्मलवार स्वामी – मधुरकवि आळ्वार)

वेदवल्ली : मधुरकवि आळ्वार जी की नम्मलवार स्वामी जी क्र प्रति भक्ति बहुत ही हृदयस्पर्शी है और आपने इसे बहुत अच्छी तरह समझाया है दादी जी ।

दादी : सुनकर बहुत अच्छा लगा वेदवल्ली |

व्यास : दादी जी, आपके शब्दों को सुनना बहुत दिलचस्प है। कृपया हमें और बताएं।

दादी : मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी होगी लेकिन अब बाहर बहुत अंधेरा हो रहा है। अब अपने घर जाओ। बच्चे अपनी दादी के साथ हुई बातचीत के बारे में सोचकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए निकल जाते हैं।

अडियेन् रोमेश चंदर रामानुजन दासन

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प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
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ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವಮ್ – ಆರಂಭಿಗರ ಕೈಪಿಡಿ – ಅಪಚಾರಂ (ತಪ್ಪುಗಳು)

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ಶ್ರೀಃ ಶ್ರೀಮತೆ ಶಠಗೋಪಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತೆ ರಾಮಾನುಜಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತ್ ವರವರಮುನಯೆ ನಮಃ

ಪೂರ್ಣ ಸರಣಿ

ಕೈಂಕರ್ಯಂ

ಪರಾಶರ,ವ್ಯಾಸ , ವೇದವಲ್ಲಿ ಮತ್ತು ಅತ್ತುಳಾಯ್ ಆಂಡಾಳ ಅಜ್ಜಿ ಮನೆಗೆ ಬರುತ್ತಾರೆ .

ಅಜ್ಜಿ : ಬನ್ನಿ ಮಕ್ಕಳೆ. ನಿಮ ಕೈ ಕಾಲು ತೊಳೆಯಿರಿ, ನಾನು ಪೆರುಮಾಳಿಗೆ ಅರ್ಪಿಸಿದ ಹಣ್ಣುಗಳನ್ನು ನಿಮಗೆ ಕೊಡುತ್ತೇನೆ. ಈ ತಿಂಗಳು ಏನು ವಿಶೇಷ ಎಂದು ನಿಮಗೆ ಗೊತ್ತೇ?

ಪರಾಶರ : ನಾನು ಹೇಳುವೆನು ಅಜ್ಜಿ. ಅದು ಮಣವಾಳ ಮಾಮುನಿಗಳ ಜನ್ಮ . ಅವರ ತಿರು ನಕ್ಷತ್ರ  ತಮಿಳು ತಿಂಗಳು “ಐಪ್ಪಸಿ” ಮಾಸದ “ತಿರುಮೂಲಂ “ ನಕ್ಷತ್ರದಂದು ಇದೆ.

ವೇದವಲ್ಲಿ :  ಹೌದು, ಇದು ಮುದಲ್ ಆಳ್ವಾರ್ಗಳ್, ಸೇನೈ ಮುದಲಿಯಾರ್ ಮತ್ತು ಪಿಳ್ಳೈ ಲೋಕಾಚಾರ್ಯರ ಜನ್ಮ ಮಾಸ ಕೂಡ ಅಲ್ಲವೇ ಅಜ್ಜಿ ?

ಅಜ್ಜಿ : ಸರಿಯಾಗಿ ಹೇಳಿದೆ.  ನಾವು ಆಳ್ವಾರ್, ಆಚಾರ್ಯರು, ಅನುಷ್ಠಾನಂ , ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಬಗ್ಗೆ ಇದುವರೆಗೂ ತಿಳಿದು ಕೊಂಡಿದ್ದೇವೆ . ಇನ್ನೂ ನಾವು ಅಪಚಾರಂ ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದುಕೊಳ್ಳಬೇಕು.

ವ್ಯಾಸ : ಅಜ್ಜಿ ಅಪಚಾರಂ  ಅಂದರೆ ಏನು ?

ಅಪಚಾರಂ   ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಅಥವಾ ಅವನ ಅಡಿಯಾರ್  (ಭಕ್ತರು) ಕಡೆಗೆ ಮಾಡಿದ ಅಪರಾಧ. ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಮತ್ತು ಅವನ ಅಡಿಯಾರ್  ಅನ್ನು ಸಂತೋಷಪಡಿಸುವಲ್ಲಿ ನಾವು ಯಾವಾಗಲೂ ಉತ್ಸುಕರಾಗಿರಬೇಕು. ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಮತ್ತು ಭಾಗವತರನ್ನು ಅಸಮಾಧಾನಗೊಳಿಸುವ ಯಾವುದೇ ಕ್ರಿಯೆಯು ಅಪಚಾರಂ ಆಗಿದೆ. ನಾವು ತಪ್ಪಿಸಬೇಕಾದ ಅಪಚಾರಂ (ಅಪರಾಧಗಳು) ಯಾವುವು ಎಂಬುದನ್ನು ನಾವು ನೋಡಬಹುದು.

ಅತ್ತುಳಾಯ್ :  ಅಜ್ಜಿ ಇನ್ನೂ ವಿವರವಾಗಿ ಹೇಳಿ .

ಅಜ್ಜಿ : ಹೌದು. ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವರಿಗೆ , ಶಾಸ್ತ್ರವು ಮೂಲ / ಅಡಿಪಾಯ / ಮಾರ್ಗದರ್ಶಿಯಾಗಿದೆ. ನಮ್ಮ ಪೂರ್ವಾಚಾರ್ಯರು ಶಾಸ್ತ್ರಕ್ಕೆ  ಅತ್ಯಂತ ಗೌರವವನ್ನು ಹೊಂದಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಅವರ ಅನುಷ್ಠಾನಂ  / ಉತ್ತಮ ಅಭ್ಯಾಸಗಳನ್ನು ಸರಿಯಾಗಿ ಅನುಸರಿಸುತ್ತಿದ್ದರು. ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಮತ್ತು ಅವನ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಯಾವುದೇ ಅಪರಾಧ ಮಾಡಲು ಅವರು ತುಂಬಾ ಭಯಭೀತರಾಗಿದ್ದರು. ಆದ್ದರಿಂದ, ಅಪಚಾರ ಗಳನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಲು ನಾವು ಸಾರ್ವಕಾಲಿಕ ಜಾಗರೂಕರಾಗಿರಬೇಕು. ಈಗ ನಾವು ಒಂದೊಂದಾಗಿ (ಅಪಚಾರ ಪ್ರಕಾರಗಳು) ವಿವರವಾಗಿ ನೋಡಬಹುದು. ಮೊದಲನೆಯದಾಗಿ ನಾವು ಭಗವತ್ ಅಪಾಚರಂ ಬಗ್ಗೆ ನೋಡೋಣ.

ವ್ಯಾಸ: ಎಂಪೇರುಮಾಣಿಗೆ ಅಪಚಾರ ಮಾಡುವುದು ಭಗವತ್  ಅಪಚಾರಂ ಅಲ್ಲವೇ ಅಜ್ಜಿ ?

ಅಜ್ಜಿ : ಹೌದು. ಕೆಳಗಿನವುಗಳನ್ನು ಭಗವತ್ ಅಪಚಾರಮ್ ಎಂದು ಪಟ್ಟಿ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.

ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವನಾದ  ನಂತರ, ಇತರ ಧೇವತೆಗಳನ್ನು ಪೂಜಿಸುವುದು ಕೂಡ ಭಗವತ್ ಅಪಾಚರಂ. ಎಲ್ಲವೂ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ ಸೃಷ್ಟಿಗಳು

  • ಬ್ರಹ್ಮ, ಶಿವ, ವಾಯು, ವರುಣ, ಇಂದ್ರ ಸೇರಿದಂತೆ ಇತರ ಧೇವತೇಗಳಿಗೆ ಸಮನಾಗಿ ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಅನ್ನು ಪರಿಗಣಿಸುವುದು ಅಪರಾಧ
  • ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವನಾದ  ನಂತರ, ಇತರ ಧೇವತೆಗಳನ್ನು ಪೂಜಿಸುವುದು ಕೂಡ ಭಗವತ್ ಅಪಾಚರಂ. ಎಲ್ಲವೂ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ ಸೃಷ್ಟಿಗಳು
  • ನಿತ್ಯ ಕರ್ಮ ಅನುಷ್ಠಾನಂಗಳನ್ನು ನಿರ್ವಹಿಸದಿರುವುದು ಭಗವತ್ ಅಪಾಚರಂ ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ. ನಿತ್ಯ ಕರ್ಮ ಅನುಷ್ಠಾನಂ ನಮಗೆ ಎಂಪೆರುಮಾನಿನ  ಆಜ್ಞೆಗಳು, ಆದ್ದರಿಂದ ನಾವು ಅವರ ಮಾತುಗಳನ್ನು ಪಾಲಿಸಬೇಕು. ಅವನ ಆದೇಶದಂತೆ ನಾವು ಕಾರ್ಯನಿರ್ವಹಿಸದಿದ್ದರೆ, ಇದರರ್ಥ ನಾವು ಅಪರಾಧ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ಈ ಬಗ್ಗೆ ನಾವು ಮೊದಲೇ ಚರ್ಚಿಸಿದ್ದೇವೆ ಎಂದು ನಿಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ನೆನಪಿದೆ ಎಂದು ಭಾವಿಸುತ್ತೇನೆ
  • ಪರಾಶರ : ಹೌದು ಅಜ್ಜಿ , ವ್ಯಾಸ ಮತ್ತು ನಾನು ತಪ್ಪದೆ ನಿತ್ಯವೂ ಸಂಧ್ಯಾ ವಂದನೆ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೇವೆ
  • ಅಜ್ಜಿ : ಬಹಳ ಸಂತೋಷ
  • ನಾವು ತಪ್ಪಿಸಬೇಕಾದ ಮುಂದಿನ ಮುಖ್ಯ ವಿಷಯವೆಂದರೆ ಅವತಾರಮ್‌ಗಳಾದ ರಾಮಾ, ಕೃಷ್ಣವನ್ನು ಸಾಮಾನ್ಯ ಅಥವಾ ಉನ್ನತ  ಮಾನವರಂತೆ ಪರಿಗಣಿಸುವುದು. ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ತನ್ನ ಭಕ್ತರ ಮೇಲಿನ ಪ್ರೀತಿ ಮತ್ತು ಕರುಣೆಯಿಂದ ನಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ಸಹಾಯ ಮಾಡಲು ಅವನ ಅವತಾರಂಗಳನ್ನು ತೆಗೆದುಕೊಂಡನು
  • ನಮ್ಮನ್ನು ಸ್ವತಂತ್ರರೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲು ಮತ್ತು ಈ ಭೌತಿಕ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಸ್ವಾಧೀನಪಡಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು. ಎಲ್ಲರೂ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ಗೆ ಅಧೀನರಾಗಿದ್ದಾರೆಂದು ನಾವು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು ಮತ್ತು ಅದಕ್ಕೆ ಅನುಗುಣವಾಗಿ ಕಾರ್ಯನಿರ್ವಹಿಸಬೇಕು
  • ಎಂಪೆರುಮಾನ್ಗೆ ಸೇರಿದ ವಸ್ತುಗಳನ್ನು ಕದಿಯಲು. ಇದು ಅವನ ವಸ್ತ್ರಂ (ಬಟ್ಟೆ), ತಿರುವಾಭರಣಮ್ (ಆಭರಣಗಳು) ಮತ್ತು ಅವನ ಜಮೀನಿನಂತಹವು  ಸ್ಥಿರ ಗುಣಲಕ್ಷಣಗಳಂತಹ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಗುಣಲಕ್ಷಣಗಳನ್ನು ಕದಿಯುವುದನ್ನು ಒಳಗೊಂಡಿದೆ

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ಬಹಳ ಆಸಕ್ತಿದಾಯಕ . ಅಜ್ಜಿ ಭಾಗವತ ಅಪಚಾರಂ ಬಗ್ಗೆ ಹೇಳಿ ಅಜ್ಜಿ : ಖಂಡಿತ . ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ ಅಡಿಯಾರ್ಗಳಿಗೆ  ಅಪಚಾರಗಳನ್ನು ಮಾಡುವುದು ಭಾಗವತ  ಅಪಚಾರ ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ. ಭಗವತ್ ಅಪಾಚರಂ ಮತ್ತು ಭಗವತ ಅಪಚಾರಂಗಳಲ್ಲಿ, ಭಾಗವತ ಅಪಾಚರಾಮ್ ಅತ್ಯಂತ ಕ್ರೂರವಾಗಿದೆ. ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ತನ್ನ ಭಕ್ತರ ನೋವುಗಳನ್ನು ಸಹಿಸುವುದಿಲ್ಲ. ಆದ್ದರಿಂದ ಭಾಗವತ ಅಪಚಾರಂಗಳನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಲು ನಾವು ಜಾಗರೂಕರಾಗಿರಬೇಕು. ಕೆಳಗಿನವುಗಳನ್ನು ಭಗವಥ ಅಪಚಾರಂ ಎಂದು ಪಟ್ಟಿ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ

  • ಇತರ ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವರನ್ನು ನಮಗೆ ಸಮಾನವೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಿ. ನಾವು ಯಾವಾಗಲೂ ಇತರ ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವರಿಗಿಂತ  ಕಡಿಮೆ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಬೇಕು
  • ನಾವು ಯಾರನ್ನೂ ದೈಹಿಕವಾಗಿ ಮತ್ತು ಮಾನಸಿಕವಾಗಿ ನೋಯಿಸಬಾರದು
  • ಅವನ / ಅವಳ ಜನನ, ಜ್ಞಾನ, ಕಾರ್ಯಗಳು, ಸಂಪತ್ತು, ವಾಸಿಸುವ ಸ್ಥಳ, ಬಣ್ಣ ಇತ್ಯಾದಿಗಳ ಆಧಾರದ ಮೇಲೆ ಶ್ರೀವೈಶ್ನವನನ್ನು ಅಗೌರವಗೊಳಿಸುವುದನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಬೇಕು

ಇತರ ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವರೊಂದಿಗೆ ವ್ಯವಹರಿಸುವಾಗ ನಮ್ಮ ಪೂರ್ವಾಚಾರ್ಯರು ಕಟ್ಟುನಿಟ್ಟಾದ ಮಾನದಂಡಗಳನ್ನು ಕಾಯ್ದುಕೊಂಡಿದ್ದಾರೆ. ಇತರ ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವರನ್ನು ಅಸಮಾಧಾನಗೊಳಿಸದ / ಅಸಮಾಧಾನಗೊಳಿಸದಂತೆ ಅವರು ಸಾರ್ವಕಾಲಿಕ ಬಹಳ ಜಾಗರೂಕರಾಗಿದ್ದರು. ಅವರು ಎಲ್ಲರನ್ನು ಗೌರವದಿಂದ ನಡೆಸಿಕೊಂಡರು.

ವೇದವಲ್ಲಿ : ಖಂಡಿತ ಅಂತಹ ಅಪಚಾರವನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಿ ಎಂಪೆರುಮಾನನ್ನು ಸಂತೋಷಪಡಿಸುತ್ತೇವೆ

ಮಕ್ಕಳೆಲ್ಲರೂ : ಹೌದು ಅಜ್ಜಿ

ಅಜ್ಜಿ : ತುಂಬಾ ಒಳ್ಳೆಯ ಪ್ರಿಯ ಮಕ್ಕಳು. ಇಲ್ಲಿಯವರೆಗೆ ನಾನು ನಮ್ಮ ಸಂಪ್ರದಾಯಂ  ಬಗ್ಗೆ ಅನೇಕ ವಿಷಯಗಳನ್ನು ನಿಮಗೆ ಕಲಿಸಿದ್ದೇನೆ. ಮುಂದಿನ ಬಾರಿ ನೀವು ಇಲ್ಲಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಿದಾಗ, ನಿಮಗೆ ಇನ್ನಷ್ಟು ಕಲಿಸುತ್ತೇನೆ. ಈಗ  ಹೊರಗೆ ತುಂಬಾ ಕತ್ತಲೆಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಹೊರಡುವ ಸಮಯ ಇದು.

ಮಕ್ಕಳು: ಅಜ್ಜಿ , ನಾವು ತುಂಬಾ  ಕಲಿತಿದ್ದೇವೆ. ಈ ಬೋಧನೆಗಳನ್ನು ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಮತ್ತು ಆಚಾರ್ಯರ ಕೃಪೆಯಿಂದ ಸಾಧ್ಯವಾದಷ್ಟು ಅಭ್ಯಾಸ ಮಾಡಲು ನಾವು ಪ್ರಯತ್ನಿಸುತ್ತೇವೆ.

ಅಜ್ಜಿ :  ಸಂತೋಷವಾಯಿತು

ಮಕ್ಕಳು ಅಜ್ಜಿ ಯೊಂದಿಗೆ ನಡೆಸಿದ ಸಂಭಾಷಣೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಯೋಚಿಸುತ್ತಾ ಸಂತೋಷದಿಂದ ತಮ್ಮ ಮನೆಗೆ ತೆರಳುತ್ತಾರೆ.

ಅನುವಾದ : ಅಡಿಯೇನ್ ರಂಗನಾಯಕಿ ರಾಮಾನುಜ ದಾಸಿ

ಮೂಲ : http://pillai.koyil.org/index.php/2018/11/beginners-guide-apacharams/

ಆರ್ಕೈವ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ :  http://pillai.koyil.org 

ಪ್ರಮೇಯಂ (ಲಕ್ಷ್ಯ) – http://koyil.org
ಪ್ರಮಾಣಂ (ಶಾಸ್ತ್ರ ) – http://granthams.koyil.org
ಪ್ರಮಾತಾ (ಪೂರ್ವಾಚಾರ್ಯರು ) – http://acharyas.koyil.org
ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವ ಶಿಕ್ಷಣ/ಮಕ್ಕಳ ಪೋರ್ಟಲ್ – http://pillai.koyil.org

ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವಮ್ – ಆರಂಭಿಗರ ಕೈಪಿಡಿ – ಕೈಂಕರ್ಯಂ

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ಶ್ರೀಃ ಶ್ರೀಮತೆ ಶಠಗೋಪಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತೆ ರಾಮಾನುಜಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತ್ ವರವರಮುನಯೆ ನಮಃ

ಪೂರ್ಣ ಸರಣಿ

ಅನುಷ್ಠಾನಮ್

ಪರಾಶರ,ವ್ಯಾಸ , ವೇದವಲ್ಲಿ ಮತ್ತು ಅತ್ತುಳಾಯ್ ಆಂಡಾಳ ಅಜ್ಜಿ ಮನೆಗೆ ಬರುತ್ತಾರೆ .

ಅಜ್ಜಿ : ಬನ್ನಿ ಮಕ್ಕಳೆ. ನಿಮ ಕೈ ಕಾಲು ತೊಳೆಯಿರಿ, ನಾನು ಪೇರುಮಾಳಿಗೆ ಅರ್ಪಿಸಿದ ಹಣ್ಣುಗಳನ್ನು ನಿಮಗೆ ಕೊಡುತ್ತೇನೆ. ನೀವು ಆಳವಂಧಾರರ  ತಿರುನಕ್ಷತ್ರಂ ಆಚರಿಸಿದಿರೆ ?

ಪರಾಶರ: ಹೌದು, ಚೆನ್ನಗಿ ಆಚರಿಸಿದೆವು. ಆಳವಂಧಾರರ  ಸನ್ನಿಧಿಯಲ್ಲಿ ಚೆನ್ನಾಗಿ ದರ್ಶನವಾಯಿತು. ಅಲ್ಲಿ ಭರ್ಜರಿಯಾಗಿ ಆಚರಿಸಿದರು. ನಮ್ಮ ತಂದೆ ಆಳವಂಧಾರರ  ವಾಳಿ ತಿರುನಾಮಂ ಕಳಿಸಿದರು ಮತ್ತು ನಾವು ಅದನ್ನು ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಪಠಿಸಿದೆವು .

ಅಜ್ಜಿ : ಬಹಳ ಸಂತೋಷ

ವೇದವಲ್ಲಿ : ಕಳೆದ ಬಾರಿ ನೀವು ಕೈಂಕರ್ಯಂನ ಮಹತ್ವವನ್ನು ತಿಳಿಸುವಿರಿ ಎಂದು ಹೇಳಿದ್ದೀರಿ. ಅದು ನಿಮಗೆ ನೆನಪಿದೆಯೇ?

ಅಜ್ಜಿ : ಹೌದು ನನಗೆ ನೆನಪಿದೆ. ನೀವು ನೆನಪಿಸಿಕೊಂಡಿದ್ದಕ್ಕೆ ನನಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಗಿದೆ ಮತ್ತು ನೀವು ಇದನ್ನು ಕೇಳಿದ್ದೀರಿ.ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಎಂದರೆ  ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಮತ್ತು ಅವರ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸುವುದು . ನಮ್ಮ ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಅನ್ನು  ಸಂತೋಷಪಡಿಸಬೇಕು.    

ವ್ಯಾಸ : ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಸಂತೋಷವಾಗಿದ್ದರೆ ನಾವು ಅವನಿಗೆ ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳನ್ನು ಮಾಡಲು ತುಂಬಾ ಉತ್ಸುಕರಾಗಿದ್ದೇವೆ. ನಾವು ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳು  ಹೇಗೆ ಮಾಡಬಹುದು?

ಅಜ್ಜಿ :  ನಾವು ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಅನ್ನು ನಮ್ಮ ಹೃದಯದಿಂದ ಮಾಡಬಹುದು (ಮಾನಸೀಕ  ಕೈಂಕರ್ಯಂ  ), ನಮ್ಮ ಮಾತುಗಳು (ವಾಚಿಕ ಕೈಂಕರ್ಯಂ) ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ದೇಹದೊಂದಿಗೆ (ಶರೀರ  ಕೈಂಕರ್ಯಂ). ಆಂಡಾಳ್  ನಾಚ್ಚಿಯಾರ್  ಕೂಡ ಅದೇ ಹೇಳಿದರು ನಾವು ಅವರ ವೈಭವವನ್ನು ಹಾಡಬಹುದು, ಅವನ ಬಗ್ಗೆ ಯೋಚಿಸಬಹುದು ಮತ್ತು ಅರ್ಪಿಸಬಹುದು ಎಂದು ಅವಳ ತಿರುಪ್ಪಾವೈ   5 ನೇ ಪಾಸುರಂನಲ್ಲಿ ಹೂವುಗಳು ಅರ್ಪಿಸಲು ಹೇಳಿದಳು  . ಈ ಮೂಲಕ ನಾವು ಅವನ ಹೃದಯವನ್ನು ಮೆಚ್ಚಿಸಬಹುದು. ಎಂಪೆರುಮಾನಿನ  ದೈವಿಕ ಗುಣಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಯೋಚಿಸುವುದು ಮಾನಸೀಕ  ಕೈಂಕರ್ಯಂ  ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ. ಅವರ ದೈವಿಕ ವೈಭವವನ್ನು ಹೊಗಳುವುದು / ಹಾಡುವುದು ಮತ್ತು ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಮತ್ತು ಅವರ ಭಕ್ತರ ಶ್ರೇಷ್ಠತೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಮಾತನಾಡುವುದು, ಮುಖ್ಯವಾಗಿ, ಆಳ್ವಾರ್ ಅವರ ಸ್ತುತಿಗೀತೆಗಳನ್ನು ಮತ್ತು ಪೂರ್ವಾಚಾರ್ಯರ ಸ್ತೋತ್ರಮ್‌ಗಳನ್ನು ಪಠಿಸುವುದರಿಂದ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಗೆ  ಬಹಳ ಸಂತೋಷವನ್ನುಂಟುಮಾಡುತ್ತದೆ. ಈ ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳು ವಾಚಿಕಾ ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತವೆ. ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ  ದೇವಾಲಯದ ಆವರಣ / ಸನ್ನಿಧಿಯನ್ನು ಸ್ವಚ್ಛ  ಗೊಳಿಸುವುದು, ರಂಗೋಲಿಗಳನ್ನು (ಸುಂದರವಾದ ಆಕಾರಗಳು) ಚಿತ್ರಿಸುವ ಮೂಲಕ ತನ್ನ ಆವರಣವನ್ನು / ಸನ್ನಿಧಿಯನ್ನು ಅಲಂಕರಿಸುವುದು, ಹೂಮಾಲೆಗಳನ್ನು ತಯಾರಿಸುವ ಮೂಲಕ, ಅವನ ತಿರುವಾರಾಧನಕ್ಕೆ  ಗಂಧದ  ಲೇಪವನ್ನು ರುಬ್ಬುವ ಮೂಲಕ ಶರೀರ  ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ. ಮೊದಲಿಗೆ, ನಮ್ಮ ಮನೆಗಳಲ್ಲಿ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಗೆ ನಾಮಮಿನ್ ಸಾಧ್ಯವಾದ  ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳನ್ನು ಮಾಡಬೇಕು . ನಿಮ್ಮಂತಹ ಮಕ್ಕಳು ನಿರ್ವಹಿಸುವ ಕೈಂಕರ್ಯಂ ಅನ್ನು ಸಂತೋಷದಿಂದ ಸ್ವೀಕರಿಸುತ್ತಾರೆ.

ಪರಾಶರ : ನೀವು ಇದನ್ನು ಚೆನ್ನಾಗಿ ವಿವರಿಸಿದ್ದೀರಿ ಅಜ್ಜಿ . ನಮ್ಮ ಮನೆಯಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ತಂದೆ ಮಾಡುವ  ತಿರುವಾರಾಧನದಲ್ಲಿ ನಾವು ಸಂತೋಷದಿಂದ ಭಾಗವಹಿಸುತ್ತೇವೆ.

ಅಜ್ಜಿ: ಬಹಳ ಸಂತೋಷ

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ನಾನು ಮತ್ತು ವೇದವಲ್ಲಿ ರಂಗೋಲಿ ಮತ್ತು ಹೂವಿನ ಮಾಲೆ ತಯಾರಿಸುವ ಕೈಂಕರ್ಯ ಮಾಡುತ್ತೇವೆ.

ಅಜ್ಜಿ : ಮತ್ತೊಂದು ಪ್ರಮುಖ ಅಂಶವೆಂದರೆ, ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಗೆ ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳನ್ನು ಮಾಡುವುದಕ್ಕಿಂತ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ ಅಡಿಯಾರ್ ಗಳಿಗೆ   (ಭಕ್ತರು)  ಕೈಂಕರ್ಯಂಗಳನ್ನು ಮಾಡುವುದು ಹೆಚ್ಚು ಮುಖ್ಯವಾಗಿದೆ. ಉದಾಹರಣೆ, ಲಕ್ಷ್ಮಣನು ಎಲ್ಲಾ ಕೈಂಕರ್ಯಗಳನ್ನು ಎಂಪೆರುಮಾನ್ಗೆ  ಮಾಡಿದನು ಆದರೆ ಶತ್ರುಘ್ನ  ಅವರು ಶ್ರೀ ರಾಮ ಅವರ ಆತ್ಮೀಯ ಸಹೋದರ ಮತ್ತು ಭಕ್ತ ಭರತನಿಗೆ ಕೈಂಕರ್ಯಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದರು. ಅಲ್ಲದೆ, ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್ ತನ್ನ ಪ್ರಿಯ ಕೃಷ್ಣನನ್ನು ತನ್ನ ಆಹಾರ, ನೀರು ಮತ್ತು ಅಡಿಕೆ  ಎಲೆಗಳು / ಬೀಜಗಳು ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಿದನು, ಆದರೆ ಮಧುರಕವಿ ಆಳ್ವಾರ್  ಅವರು ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್ ಅವರನ್ನು ತಮ್ಮ ಏಕೈಕ ಭಗವಂತ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಿದರು. ಇದು ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ನ ಅಡಿಯಾರ್ಗಳ  ಶ್ರೇಷ್ಠತೆಯನ್ನು ಒತ್ತಿಹೇಳುತ್ತದೆ. ಆದ್ದರಿಂದ, ನಾವು ಯಾವಾಗಲೂ ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಆಡಿಯಾರ್‌ಗಳ ಭಕ್ತರಾಗಿರಬೇಕು.

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ನೀವು ಹೇಳಿದಂತೆ ಖಂಡಿತವಾಗಿ ಎಂಪೆರುಮಾನಿನ ಅಡಿಯಾರಗಳಿಗೆ ಕೈಂಕರ್ಯ ಮಾಡುವುದನ್ನು ನಾನು ಪರಿಗಣಿಸುತ್ತೇನೆ. ಆದರೆ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಹೇಗೇ ಸೇವೆ ಮಾಡಬಹುದು ಅಜ್ಜಿ ?  

ಅಜ್ಜಿ : ಭಕ್ತರು ನಮ್ಮ ಮನೆಗಳಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಿದಾಗ, ನಾವು ಅವರಿಗೆ ನಮಸ್ಕಾರಗಳನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಬೇಕು ಮತ್ತು ಅವರಿಗೆ ಹಿತಕರವಾಗಬೇಕು. ನಾವು ಅವರಿಗೆ ಅಗತ್ಯವಿರುವಂತೆ ಸಹಾಯ ಮಾಡಬೇಕು. ನಾವು ಅವರಿಂದ ಎಂಪೇರುಮಾನ್, ಆಳ್ವಾರ್  ಮತ್ತು ಅಚಾರ್ಯರ ಬಗ್ಗೆ ಅದ್ಭುತವಾದ ಚರಿತ್ರೆ ಗಳನ್ನು ವಿಚಾರಿಸಬೇಕು ಮತ್ತು ಅವರಿಂದ ಸಾಧ್ಯವಾದಷ್ಟು ಕಲಿಯಲು ಪ್ರಯತ್ನಿಸಬೇಕು. ಅವರ ಕೈಂಕರ್ಯಗಳಲ್ಲಿ ಅವರಿಗೆ ಏನಾದರೂ ಸಹಾಯ ಬೇಕಾ ಎಂದು ನಾವು ವಿನಮ್ರವಾಗಿ ಕೇಳಬೇಕು ಮತ್ತು ಅವರನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸಬೇಕು. ಭಕ್ತರಿಗಾಗಿ ಕೈಂಕರ್ಯಗಳಲ್ಲಿ ತೊಡಗಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು ಇಂತಹ ಹಲವು ಮಾರ್ಗಗಳಿವೆ.

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ಈಗ ಅರ್ಥವಾಯಿತು ಅಜ್ಜಿ  ನಾವು ಅಂತಹ ಸನ್ನಿವೇಶಕ್ಕೆ ಸದಾ ತಯಾರಾಗಿ ಇರುತ್ತೇವೆ.

(ಎಲ್ಲರೂ ಒಂದೇ ಕೊರಳಿನಲ್ಲಿ “ಹೌದು” ಎನ್ನುತ್ತಾರೆ )

ಅಜ್ಜಿ : ಬಹಳ ಸಂತೋಷ ಮಕ್ಕಳೆ

ವೇದವಲ್ಲಿ : ನಿಮ್ಮ ಮಾತುಗಳು ಕೇಳಲು ಬಹಳ ಚೆನ್ನಾಗಿದೆ ಅಜ್ಜಿ . ಇನ್ನಷ್ಟು ಹೇಳಿ.

ಅಜ್ಜಿ : ಹೆಚ್ಚಿನದನ್ನು ವಿವರಿಸಲು ನನಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಗುತ್ತದೆ ಆದರೆ ಈಗ ಅದು ಹೊರಗೆ ತುಂಬಾ ಕತ್ತಲೆಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ಮುಂದಿನ ಬಾರಿ, ನಾವು ಇನ್ನೊಂದು ವಿಷಯವನ್ನು ಚರ್ಚಿಸುತ್ತೇವೆ. ಈಗ, ನೀವೆಲ್ಲರೂ ನಿಮ್ಮ ಮನೆಗಳಿಗೆ ಹೋಗಬೇಕು.

ಮಕ್ಕಳು ಆಂಡಾಲ್ ಅಜ್ಜಿ ಯೊಂದಿಗೆ ನಡೆಸಿದ ಅದ್ಭುತ ಸಂಭಾಷಣೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಯೋಚಿಸುತ್ತಾ ಸಂತೋಷದಿಂದ ತಮ್ಮ ಮನೆಗಳಿಗೆ ತೆರಳುತ್ತಾರೆ.

ಅನುವಾದ : ಅಡಿಯೇನ್ ರಂಗನಾಯಕಿ ರಾಮಾನುಜ ದಾಸಿ

ಮೂಲ : http://pillai.koyil.org/index.php/2018/10/beginners-guide-kainkaryam/

ಆರ್ಕೈವ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ :  http://pillai.koyil.org 

ಪ್ರಮೇಯಂ (ಲಕ್ಷ್ಯ) – http://koyil.org
ಪ್ರಮಾಣಂ (ಶಾಸ್ತ್ರ ) – http://granthams.koyil.org
ಪ್ರಮಾತಾ (ಪೂರ್ವಾಚಾರ್ಯರು ) – http://acharyas.koyil.org
ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವ ಶಿಕ್ಷಣ/ಮಕ್ಕಳ ಪೋರ್ಟಲ್ – http://pillai.koyil.org

ಶ್ರೀವೈಷ್ಣವಮ್ – ಆರಂಭಿಗರ ಕೈಪಿಡಿ – ಅನುಷ್ಠಾನಮ್

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ಶ್ರೀಃ ಶ್ರೀಮತೆ ಶಠಗೋಪಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತೆ ರಾಮಾನುಜಾಯ ನಮಃ ಶ್ರೀಮತ್ ವರವರಮುನಯೆ ನಮಃ

ಪೂರ್ಣ ಸರಣಿ

ಅಷ್ಟ ದಿಗ್ಗಜರು ಮತ್ತು ಇತರರು

ಪರಾಶರ , ವ್ಯಾಸ , ವೇದವಲ್ಲಿ  ಮತ್ತು ಅತ್ತುಳಾಯ್  ಅವರು ಆಂಡಾಲ್  ಅಜ್ಜಿ  ಅವರ ಮನೆಗೆ ಪ್ರವೇಶಿಸಿದರು.

ಅಜ್ಜಿ : ಮಕ್ಕಳನ್ನು ಸ್ವಾಗತಿಸಿ. ನಿಮ್ಮ ಕೈ ಕಾಲುಗಳನ್ನು ತೊಳೆಯಿರಿ ಪೆರುಮಾಳ್ಗೆ ಅರ್ಪಿಸಿದ ಹಣ್ಣುಗಳನ್ನು ನಾನು ನಿಮಗೆ ನೀಡುತ್ತೇನೆ. ಈ ತಿಂಗಳ ವಿಶೇಷತೆ ಏನು ಎಂದು ನಿಮಗೆ ತಿಳಿದಿದೆಯೇ?

ವೇದವಲ್ಲಿ : ನಾನು  ಹೇಳುತ್ತೇನೆ ಅಜ್ಜಿ . ನೀವು ಮೊದಲು ನಮಗೆ ಹೇಳಿದ್ದನ್ನು ನಾನು ನೆನಪಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ. ಇದು “ಶೂಡಿಕ್ ಕೊಡುತ್ತ ಶುಡರ್ಕೋಡಿ” ಆಂಡಾಲ್ ನಾಚ್ಚಿಯಾರ್  ಅವರ ಜನ್ಮ ತಿಂಗಳು. ಅವರ ಜನ್ಮದಿನವು ತಮಿಳು ತಿಂಗಳ “ಆಡಿ ” ಮತ್ತು  “ಪೂರಂ” ನಕ್ಷತ್ರದಲ್ಲಿದೆ .

ಪರಾಶರ : ಹೌದು. ಈ ತಿಂಗಳು ನಾಥಮುನಿಗಳ್  ಅವರ ಮೊಮ್ಮಗ ಆಳವಂದಾರ್  ಅವರ ಜನ್ಮ ತಿಂಗಳು ಕೂಡ. ತಮಿಳು  ಜನ್ಮ ತಿಂಗಳು “ಆಡಿ ” & ನಕ್ಷತ್ರ “ಉತ್ತರಾಡಂ ”. ನಾನು ಹೇಳಿದ್ದು ಸರಿಯೇ  ಅಜ್ಜಿ ?

ಅಜ್ಜಿ : ಚೆನ್ನಾಗಿ ಹೇಳಿದೆ . ಆಳ್ವಾರ್ ಮತ್ತು ಆಚಾರ್ಯರ ಬಗ್ಗೆ ನಾವು ಇಲ್ಲಿಯವರೆಗೆ ನೋಡಿದ್ದೇವೆ. ಮುಂದೆ ನಾವು ಪ್ರತಿದಿನ ಅನುಸರಿಸಬೇಕಾದ ಅನುಷ್ಠಾನಂಗಳ್  (ಉತ್ತಮ ಅಭ್ಯಾಸಗಳು) ಬಗ್ಗೆ ಕಲಿಯುತ್ತೇವೆ.

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ಅಜ್ಜಿ , ಅನುಷ್ಠಾನಂ ಎಂದರೇನು?

ಅಜ್ಜಿ : ನಮ್ಮ ಯೋಗಕ್ಷೇಮಕ್ಕಾಗಿ ಶಾಸ್ತ್ರಗಳು ನಿಗದಿಪಡಿಸಿದ ಕೆಲವು ನಿಯಮಗಳಿವೆ, ಆ ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಅನುಸರಿಸಿ ಅನುಷ್ಠಾನಂ  (ಉತ್ತಮ ಅಭ್ಯಾಸಗಳು) ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ. ಉದಾಹರಣೆಗೆ: ಮುಂಜಾನೆ ನಾವು ಎಚ್ಚರಗೊಂಡು ಸ್ನಾನ ಮಾಡಬೇಕು. ಇದು ನಮಗೆ ನಿಗದಿಪಡಿಸಿದ ಒಂದು ನಿಯಮ. ಇದನ್ನು ನಮ್ಮ ಆಂಡಾಲ್ ನಾಚ್ಚಿಯಾರ್   ತನ್ನ ತಿರುಪ್ಪಾವೈಯಲ್ಲಿ “ನಾಟ್ಕಾಲೇ  ನೀರಾಡಿ ” ಎಂದು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ

ವ್ಯಾಸ : ಹೌದು ಅಜ್ಜಿ , ನನಗೆ ನೆನಪಿದೆ ಅದು ತಿರುಪ್ಪಾವೈಯಲ್ಲಿ ಎರಡೆನೆಯ ಪಾಸುರ  .

ಅಜ್ಜಿ : ನಿಖರವಾಗಿ ! ಮುಂಜಾನೆ ನಾವು ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ಹೆಸರುಗಳನ್ನು ಯೋಚಿಸುವಾಗ ಮತ್ತು ಜಪಿಸುವಾಗ, ನಮ್ಮ ಮನಸ್ಸು ಶುದ್ಧವಾಗುತ್ತದೆ. ಎಲ್ಲಕ್ಕಿಂತ ಮುಖ್ಯವಾದ ವಿಷಯವೆಂದರೆ, ಪ್ರತಿದಿನ ಬೆಳಿಗ್ಗೆ ಸ್ನಾನ ಮಾಡಿದ ನಂತರ ನಾವು ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು ಮತ್ತು ಉಪನಯನಂ ಹೊಂದಿದವರು ಸಂದ್ಯಾವಂಧನಂ ಮತ್ತು ಇತರ ದೈನಂದಿನ ಕರ್ಮ ಅನುಷ್ಠಾನಂಗಳನ್ನು ಮಾಡಬೇಕು.

ಪರಾಶರ ಮತ್ತು  ವ್ಯಾಸ : ಅಜ್ಜಿ , ನಾವು ನಿತ್ಯ ಕರ್ಮ ಅನುಷ್ಠಾನಂಗಳನ್ನು ತಪ್ಪದೆ ನಿರ್ವಹಿಸುತ್ತೇವೆ.

ಅಜ್ಜಿ : ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷ ! ವೇದವಲ್ಲಿ : ನಾವು ಪೂರ್ಣ ಸಂತೋಷದಿಂದ ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು ಧರಿಸಿದ್ದೇವೆ. ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು ಧರಿಸುವುದರ ಹಿಂದಿನ ಮಹತ್ವ ಮತ್ತು ಕಾರಣವನ್ನು ದಯವಿಟ್ಟು ತಿಳಿಸಿ.  ಅಜ್ಜಿ , ನಾವು ಕೇಳಲು ತುಂಬಾ ಉತ್ಸುಕರಾಗಿದ್ದೇವೆ

ಅಜ್ಜಿ : ಸರಿ , ಕೇಳಿ . ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು – ಕಾಪ್ಪು ಎಂದರೆ ರಕ್ಷೆ . ಎಂಪೆರುಮಾನ್ ಮತ್ತು ಪಿರಾಟ್ಟಿ ಸದಾ ನಮ್ಮ ಜೊತೆ ಇದ್ದು ನಮ್ಮನ್ನು ರಕ್ಷಿಸುವರು . ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು ಧಾರಿಸುವುದರಿಂದ ನಾವು ಅವರ ಭಕ್ತರು ಎಂದು ತಿಳಿದುಬರುವುದು.  ಆದ್ದರಿಂದ ನಾವು ಅದನ್ನು ಸಂತೋಷದಿಂದ ಮತ್ತು ಗರ್ವದಿಂದ ಧರಿಸಬೇಕು

ವೇದವಲ್ಲಿ : ತಿರುಮಣ್  ಕಾಪ್ಪು ವಿಷಯ ನಮಗೆ ಈಗ ತಿಳಿದಿದೆ. ಸಂತೋಷವಾಗಿದೆ

ಎಲ್ಲರೂ : ಹೌದು ಅಜ್ಜಿ .

ಅಜ್ಜಿ : ತುಂಬಾ ಒಳ್ಳೆಯದು ಮಕ್ಕಳೆ . ಅದೇ ರೀತಿ ನಮ್ಮ ಯೋಗಕ್ಷೇಮಕ್ಕಾಗಿ ಶಾಸ್ತ್ರಗಳು ನಿಗದಿಪಡಿಸಿದ ಇನ್ನೂ ಅನೇಕ ನಿಯಮಗಳಿವೆ. ಅವುಗಳಲ್ಲಿ ಕೆಲವನ್ನು ನಾನು ಈಗ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ, ಎಚ್ಚರಿಕೆಯಿಂದ ಆಲಿಸಿ. ತಿನ್ನುವ ಮೊದಲು ಮತ್ತು ನಂತರ ನಾವು ಕೈ ಕಾಲುಗಳನ್ನು ತೊಳೆಯಬೇಕು. ಏಕೆಂದರೆ, ನಾವು ಸ್ವಚ್ಛವಾಗಿದ್ದರೆ  ಮಾತ್ರ ನಮ್ಮ ಆರೋಗ್ಯ ಉತ್ತಮವಾಗಿರುತ್ತದೆ. ಬಹುಮುಖ್ಯ ವಿಷಯವೆಂದರೆ, ನಾವು ಪೆರುಮಾಳ್ ಗೆ ನೀಡುವ ಆಹಾರವನ್ನು ಮಾತ್ರ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಬೇಕು. ನಾವು ತಿನ್ನುವ ಆಹಾರವು ನಮ್ಮ ಸ್ವಭಾವವನ್ನು ನಿರ್ಧರಿಸುತ್ತದೆ. ಪೆರುಮಾಳ್  ಪ್ರಸಾದವನ್ನು ಸೇವಿಸುವುದರಿಂದ  ಸತ್ವ  ಗುಣ  (ಉತ್ತಮ ಗುಣಗಳು) ಅವನ ಅನುಗ್ರಹದಿಂದ ಬೆಳೆಯುತ್ತದೆ.

ಪರಾಶರ : ನಮ್ಮ ಮನೆಯಲ್ಲಿ, ನನ್ನ ತಾಯಿ ಆಹಾರವನ್ನು ತಯಾರಿಸುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ನನ್ನ ತಂದೆ ಅದನ್ನು ಎಂಪೆರುಮಾನ್‌ಗೆ ನೀಡುತ್ತಾರೆ. ಪೆರುಮಾಳ್  ತೀರ್ಥಮ್ ತೆಗೆದುಕೊಂಡ ನಂತರವೇ, ನಾವು ಪ್ರಸಾದವನ್ನು ಸೇವಿಸುತ್ತೇವೆ.

ಅಜ್ಜಿ : ಉತ್ತಮ ಅಭ್ಯಾಸ .

ಅಜ್ಜಿ : ಆಳ್ವಾರುಗಳ ಕೆಲವು ಪಾಸುರಮ್‌ಗಳನ್ನು ಪಠಿಸಿದ ನಂತರವೇ ನಾವು ಪ್ರಸಾದಮ್ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಬೇಕು. ಪೆರುಮಾಳಿಗೆ ನೀಡುವ ಆಹಾರವು ನಮ್ಮ ಹೊಟ್ಟೆಗೆ ಆಹಾರವಾಗಿದೆ. ನಮ್ಮ ನಾಲಿಗೆಗೆ ಆಹಾರ ಯಾವುದು ಎಂದು ನಿಮಗೆ ತಿಳಿದಿದೆಯೇ?

ಅತ್ತುಳಾಯ್ : ನಾಲಿಗೆಗೆ ಆಹಾರ! ಅದೇನು ಹೇಳಿ ಅಜ್ಜಿ ?

ಅಜ್ಜಿ : ಹೌದು ಮಗು . ಎಂಪೆರುಮಾನ್  ದೈವಿಕ ಹೆಸರುಗಳನ್ನು ಜಪಿಸುವುದು ನಮ್ಮ ನಾಲಿಗೆಗೆ ಆಹಾರವಾಗಿದೆ. ಮಧುರಕವಿ ಆಳ್ವಾರ್  ಅವರು ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್ ಅವರನ್ನು ತಮ್ಮ ಸ್ವಾಮಿ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಮಧುರಕವಿ ಆಳ್ವಾರ್ ತನ್ನ ಕಣ್ಣಿನುನ್   ಚಿರುತ್ತಾಂಬುನಲ್ಲಿ ಹೇಳುವಂತೆ  ಕುರುಗೂರ್ ನಂಬಿ (ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್ ಅವರ ಹೆಸರುಗಳಲ್ಲಿ ಒಂದು) ಹೇಳುವುದು ಅವನ ನಾಲಿಗೆಯಲ್ಲಿ ಜೇನುತುಪ್ಪವನ್ನು ಸವಿಯುವಂತಿದೆ.

( ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್– ಮಧುರಕವಿ ಆಳ್ವಾರ್)

ವೇದವಲ್ಲಿ : ಅಜ್ಜಿ , ನಮ್ಮಾಳ್ವಾರ್ ಗಾಗಿ ಮಧುರಕವಿ ಆಳ್ವಾರ್ ಅವರ  ಭಕ್ತಿ ತುಂಬಾ ಹೃದಯವನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ನೀವು ಅದನ್ನು ಚೆನ್ನಾಗಿ ವಿವರಿಸಿದ್ದೀರಿ ಅಜ್ಜಿ . ಇಂದಿನಿಂದ , ನಾವು ಕಣ್ಣಿನುನ್   ಚಿರುತ್ತಾಂಬು ಪಠಿಸುತ್ತೇವೆ ಮತ್ತು ಅದನಂತರ  ನಾವು ಪ್ರಸಾದವನ್ನು ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳುತ್ತೇವೆ..

ಅಜ್ಜಿ : ಬಹಳ ಒಳ್ಳೆಯದು.

ವ್ಯಾಸ : ಅಜ್ಜಿ , ನೀವು ಹೇಳುವ ವಿಷಯಗಳು ಬಹಳ ಆಸಕ್ತಿದಾಯಕವಾಗಿವೆ .ಇನ್ನೂ ಹೆಚ್ಚಿಗೆ ಹೇಳಿ

ಅಜ್ಜಿ : ಅದನ್ನು ಹೇಳಲು ನನಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಗುತ್ತದೆ ಆದರೆ ಈಗ  ಹೊರಗೆ ತುಂಬಾ ಕತ್ತಲೆಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ಈಗ ನಿಮ್ಮ ಮನೆಗೆ ಹೋಗಿ.

ಮಕ್ಕಳು ಅಜ್ಜಿ ಯೊಂದಿಗೆ ನಡೆಸಿದ ಸಂಭಾಷಣೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಯೋಚಿಸುತ್ತಾ ಸಂತೋಷದಿಂದ ತಮ್ಮ ಮನೆಗೆ ತೆರಳುತ್ತಾರೆ.

ಅನುವಾದ : ಅಡಿಯೇನ್ ರಂಗನಾಯಕಿ ರಾಮಾನುಜ ದಾಸಿ

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